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जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए पर्यावरण संरक्षण तेज करना होगा!

जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए पर्यावरण संरक्षण तेज करना होगा!
इस साल पहले तो मानसून आने में देरी हुई और पहले महीने में सभी जगह औसत से काफी कम बरसात हुई । लेकिन फिर भी जब पानी बरसा तो जबरदस्त तबाही मचा गया । महाराष्ट्र,कर्नाटक,केरल और आसपास के इलाकों में अगस्त के महीने में मुसलाधार बरसात से अभूतपूर्व बाढ़ की स्थिति निर्मित हो गई । कुछ ही दिनों में जबरदस्त बरसात के कारण केरल के मल्लापुरम और वायनाड जिलों में भूस्खलन की भयावह घटनाएं हुई । किन्तु राज्य एवं केन्द्र सरकारों ने ऐतिहातन कोई कदम नहीं उठाया क्योंकि वे विकास के नाम पर अंधाधुंध पर्यावरण का विनाश कर रहे हैं । सत्ताधारी आसन्न पर्यावरण की त्रासदी और वैश्विक गरमाहट ,जलवायु परिवर्तन ,आदि के माध्यम से मिल रही इसकी चेतावनी को सुनने के लिए तैयार नहीं है । माधव गाडगिल कमेटी 2011 में केंद्र सरकार को पश्चिम घाट के बारे में रिपोर्ट सोपी थी जिसमें गंभीर हालात को विस्तार से बताया था और चेतावनी दी थी कि अगर पत्थर खदानों,रिसाट॔ मालिकों, बागानों और रीयल इस्टेट माफिया द्वारा पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील इलाकों में जारी लूट को रोकने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाया गया तो इन इलाकों में इसका विनाशकारी दुष्प्रभाव  झेलना पड़ेगा ।
गाडगिल कमेटी रिपोर्ट पर सकारात्मक चर्चा करने के बजाय भू-माफिया और निहित स्वाथ॔ रखने वाले तत्वों ने केरल,तमिलनाडु,गोवाऔर महाराष्ट्र की राज्य सरकारों का नेतृत्व करने वाली प्रमुख राजनैतिक पार्टियों के समर्थन से जिसमें माकपा ,अन्नाद्रमुक,भाजपा और कांग्रेस शामिल थी, गाडगिल कमेटी की सिफारिशों के खिलाफ़ हिंसक आंदोलन चलाया । तब केंद्र में कांग्रेस-नीति संप्रग सरकार थी, जिसने गाडगिल कमेटी रिपोर्ट का अध्ययन करने और इसमें कथित आवश्यक बदलाव के लिए कस्तुरीरंगन कमेटी का गठन कर दिया । कस्तुरीरंगन कमेटी ने गाडगिल कमेटी की सिफारिशों को काफी हल्का कर दिया । फिर भी राज्य सरकारों ने इसका भी विरोध किया और संवेदनशील इलाकों को भू-माफियाओं के अतिक्रमण से बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया ।
2018 में आई केरल कर्नाटक के कोडगु में आई भारी बाढ़ और इस
वष॔ पूरे पश्चिम घाट के इलाके में बाढ़ से हुई तबाही ने यह साबित कर दिया है कि गाडगिल कमेटी रिपोर्ट एवं अन्य अध्ययनों में जो आशंका जाहिर की गई थी, वह कितनी सच है । केरल के उन इलाकों में जहाँ पहाड़ों को काट कर पत्थर खदान खोले गये है वहाँ भयावह घटनाएं हुई हैं । मिट्टी धंसने से आई कीचड़ की बाढ़ में पुरा गांव जमीदोज हो गया और सौ से अधिक लोग मारे गए, जैसा कि उत्तराखण्ड एवं अन्य कई इलाकों में होता रहा है । अगर पश्चिमी घाट और हिमालय को बचाने के लिए फौरी कदम नहीं उठाया गया तो इस तरह की अचानक आई बाढ़ भूस्खलन और विनाश आने वाले समय में और बढ़ेंगे ।
इस समय,कारपोरेट विकास नीति नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करते हुए टिकाऊ और जनपक्षीय विकास नीति अपनाने की जरुरत है ।
केंद्र एवं राज्य सरकारें इसमें बैठी मुख्यधारा की पार्टियाँ और नौकरशाही जो बिना सोचे समझे नव -उदार नीतियों के नशे में चूर है पूरी तरह से भ्रष्ट है जो कारपोरेट घरानों और निहित स्वार्थो की सेवा करती है, वे जलवायु परिवर्तन के कारण जान व माल के दुखद क्षति के बावजूद अपनी सोच बदलने वाली नहीं है । अगर देश के सचेत पर्यावरणवादी बार-बार आने वाली बाढ़ और सुखा के वास्तविक कारणों के बारे में जनता को शिक्षित और गोलबंद करती है और अगर जनता बड़ी संख्या में सड़क पर उतरती है तब जाकर ही इस भयावह परिस्थिति को बदला जा सकता है और प्रगति की रक्षा की जा सकती है।

सम्पादक:- डीपी सिंह चौहान।

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