#घोसी:- उपचुनाव, जम्मू- कश्मीर का राज्य का दर्जा, डूरा की बहाली कब, छेड़छाड़ के विरोध पर हत्या#
#घोसी:- उपचुनाव, जम्मू- कश्मीर का राज्य का दर्जा, डूरा की बहाली कब, छेड़छाड़ के विरोध पर हत्या# |
#घोसी: उपचुनाव में किसानों, बुनकरोंऔर युवाओं के मुद्दे ग़ायब: घोसी उपचुनाव इसवक़्त नेताओं के लिए साख की लड़ाई बन चुका है। लोगों के बीच बेरोज़गारी, खेती-किसानी, बिनकारी और दलबदल जैसे मुद्दे ख़ासाचर्चा में हैं। उत्तर प्रदेश के मऊमें घोसी इलाके के किसानों का जो दर्द पांच दशक पहले था, वही आज भी है। लोगों का कहना है किसिर्फ चुनाव के समय ही इनका हाल-चाल लेने नेता आते हैं या फिर आम से लकदक बगीचोंमें फल खाने। लोगों के मुताबिक़सालों से बंद पड़ी काटन मिल, भारीघाटे से हांफ रही चीनी मिल, बेरोज़गारीके चलते युवाओं का पलायन, गन्नाकिसानों की बदहाली और अन्नदाता की आमदनी दोगुना करने का सवाल उठता है तो सत्तारूढ़ दलके नेताओं और उनके नुमाइंदों की बोलती बंद हो जाती है# |
#कब बहाल होगा जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा: सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर केअनुच्छेद 370 परदाखिल याचिकाओं पर संविधान पीठ में 12वें दिन सुनवाई हुई।सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार पर बड़े सवाल उठाए और केंद्र सरकार सेजम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए एक समय-सीमा या रोडमैप देने कोकहा। ख़बरों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट नेकेंद्र से पूछा, "जम्मू-कश्मीर में चुनाव कब होंगे? जम्मू-कश्मीर मेंलोकतंत्र की बहाली जरूरी है।" सुप्रीम कोर्ट ने तीन सवाल पूछे कि आखिर संसदको राज्य के टुकड़े करने और अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने का अधिकार किसकानूनी स्रोत से मिला? इस अधिकार स्रोत का दुरुपयोग नहींहोगा इसकी क्या गारंटी है? तीसरा सवाल ये कि आखिर कब तक येअस्थाई स्थिति रहेगी? चुनाव करा कर विधानसभा बहाली और संसदमें प्रतिनिधित्व सहित अन्य व्यवस्था कब तक बहाल हो पाएगी? लोकतंत्रकी बहाली और संरक्षण सबसे जरूरी है। कोर्ट ने सरकार से कहा कि आप कश्मीर के लिएसिर्फ इसी दलील के आधार पर ये सब नहीं कर सकते कि जम्मू कश्मीर सीमावर्ती राज्य है और यहां पड़ोसीदेशों की कारस्तानी और सीमापर से आतंकी कार्रवाई होती रहती है# #डीयू : डूरा की बहाली कब ? दिल्ली विश्वविद्यालय शोधार्थी संघ (डूरा) भी कई साल पहले अस्तित्व में था जिसमें विशेषतः एमफिल और पीएचडी के शोधार्थीभी चुनावी प्रक्रिया में शामिल होते थे लेकिन डीयू प्रशासन द्वारा क़रीब डेढ़ दशकपहले इसे भंग कर दिया गया। इसमें विशेषतः एमफिल और पीएचडी केशोधार्थी भी चुनावी प्रक्रिया में शामिल होते थे जो मूलतः शोधार्थियों का हीप्रतिनिधित्व करते थे (हालांकि अब एमफिल को ख़त्म कर दिया गया है)। लेकिन दिल्लीविश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इसे भंग कर दिया गया। डूरा मुख्यतः विश्वविद्यालयमें नामांकित शोधार्थियों से संबंधित समस्याओं के निदान लिए एक मंच प्रदान करताथा। शोधार्थियों की भी चुनावी प्रक्रिया में भागीदारी होती थी। किताबी ज्ञान व शोधके अलावा भी डूरा विश्वविद्यालय परिसर में शोधार्थियों की समस्याओं के निवारण मेंएक सहयोगी की भूमिका में था। दिल्ली विश्वविद्यालय शोधार्थी संघ शोध विद्वानों काप्रतिनिधित्व, समर्थनऔर उनकी आवाज़ को मजबूती प्रदान करने वाला दिल्ली विश्वविद्यालय का एक प्रमुख शोधनिकाय था जिसे भंग नहीं किया जाना चाहिए था। अगर इसकी कार्यप्रणाली में कोई समस्याभी रही हो तो इसे भंग करनेकी बजाए इसमें सुधार किया जा सकता था# #छेड़छाड़ का विरोध करने पर पीटकर हत्या: प्रयागराजजिले के यमुनापार खीरी थाना अंतर्गत परमानंद इंटर कालेज में पढ़ने वाले दसवीं केछात्र सत्यम की सोमवार को समुदाय विशेष के लोगों ने लाठियों से पीट पीटकर हत्या करदी।खीरीथाने के एसएचओ नवीन कुमार सिंह ने बताया कि मृतक के परिजनों का आरोप है कि स्कूलसे छुट्टी के बाद 15 वर्षीय सत्यम अपनी चचेरी बहन के साथ घर वापस आ रहा था और रास्ते में एकसमुदाय विशेष के कुछ लोगों ने उसकी बहन के साथ छेड़छाड़ की जिसका विरोध करने परसत्यम को उन लोगों ने लाठी डंडों से पीटा। घायल अवस्थामें सत्यम को अस्पताल ले जाया गया जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया# #क्यों थम गयाप्राचीन भारतीय विज्ञान का विकास ? अतीत में ही नहीं भारत में विज्ञानजाति-धर्म की मज़बूत ज़ंजीरों से आज भी जकड़ा हुआ है। यही वजह है कि प्राचीन भारतमें विज्ञान की गौरवशाली परंपरा होने के बावजूद वह अंधकार में डूब गया। चांद पर चंद्रयान की सफल सॉफ्टलैंडिंग के बाद देश भर में हर्ष की लहर दौड़ गई और यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि कोई भी इस तरह कीवैज्ञानिक उपलब्धि भविष्य में सम्पूर्ण मानव जाति के हित में ही होती है, हालाँकि इसमें एक पक्ष यह भी है कि आजकल दुनिया भर में अंतरिक्ष अभियानोंका एक मक़सद अंतरिक्ष में सैन्य होड़ भी है, परंतु यह मुद्दायहां प्रमुख नहीं है। किसी भी चंद्रयान जैसे वैज्ञानिक अभियान में वैज्ञानिकोंद्वारा मंदिर में पूजा पाठ करना और यज्ञ करना, जिसकी बहुतचर्चा की जाती है, मुझे अधिक महत्वपूर्ण नहीं लगता, क्योंकि वैज्ञानिकहोना और वैज्ञानिक चेतना से लैस होना दोनों अलग-अलग बातें हैं# #मंत्री संदीप सिंह से कब लिया जाएगाइस्तीफ़ा ? विधानसभा मेंहंगामे और महिला संगठनों के विरोध के बावजूद खट्टर सरकार संदीप सिंह पर मेहरबाननज़र आ रही है। क्या आप सोचसकते हैं कि किसी विधानसभा में यौन उत्पीड़न आरोपी मंत्री के पक्ष में जिंदाबाद केनारे लगेंगे। उस प्रदेश के मुख्यमंत्री खुद सीना चौड़ा करके भरी सभा में कहेंगे किउन्होंने अच्छी तरह सोच लिया है कि आरोपी मंत्री का इस्तीफा नहीं लिया जाएगा। येपूरा मामला कहीं दूर-दराज का नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा काहै। जहां मनोहर लाल खट्टर की बीजेपी-जेजेपी सरकार सत्ता में है और बेटियों केसम्मान और कल्याण के नाम पर कई योजनाएं चलाने का दावा करती है। ध्यान रहे किइस मामले में पीड़िता को महिला संगठनों के अलावा स्थानीय लोगों और खाप पंचायतों काभी साथ मिला है। अभी तक इसमामले में कई बड़े प्रदर्शन देखे गए हैं# #पुलिस कार्रवाई के बाद आशाकर्मीसड़कों पर: हरियाणा मेंआशा वर्कर्स यूनियन के नेतृत्व में सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) से जुड़ीआशाकर्मी बीते 22दिनों से हड़ताल पर हैं। हड़ताल पर बैठीं इन आशाकर्मियों के पहले से तय कार्यक्रम केतहत इन्होंने सोमवार को विधानसभा कूच का ऐलान किया था हालांकि इस कूच को असफल करनेके लिए कई आशाकर्मियों और सीटू नेताओं को हिरासत में ले लिए गया था। सीटू राज्यकमेटी ने इस कार्रवाई की निंदा की है। हालांकि हिरासत में लिए गए सभी वर्कर्स और नेताओं को बिना शर्त रिहा कर दिया गया लेकिनसीटू ने इस पुलिस कार्रवाई को लोकतंत्र पर हमला बताते हुए प्रदेश भर में सड़कों परउतरकर विरोध प्रदर्शन किया। सीटू के मुताबिक़ पुलिस कीकार्रवाई आशाकर्मियों के आंदोलन को रोकने की एक कोशिश थी# #क्या तालाब की अनदेखी ने बढ़ाईकिसानों की आत्महत्याएं ? महाराष्ट्र जो कई क्षेत्रों में देश का नेतृत्व करता है अफसोस कि किसान आत्महत्याओं में भीसबसे आगे है। दरअसल, राज्य पर लगे इस कलंक को मिटाने के लिए वर्ष में केवल एक फसल उगाने वालेकिसान को टिकाऊ सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। यदि राज्यमें 40 हजार सेअधिक रिसाव तालाबों को वैज्ञानिक तरीके से विकसित किया जाए तो किसानों को अपनी फसलके लिए बरसात पर कम निर्भर रहना पड़ेगा और ऐसा हुआ तो हो सकता है कि किसानों कीआत्महत्याओं से जुड़े आंकड़ों में कमी आए। लेकिन सरकार परंपरागत सिंचाई के साधनों कोलेकर उपेक्षापूर्ण व्यवहार बरत रही है जबकि सरकार को सोचना यह चाहिए कि कैसेतालाबों के जरिए किसानों को राहत दी जा सकती है। भारत मेंजलसंकट की स्थिति को लेकर पूरे देश के लिए योजना बनाने वाली संस्था 'नीति आयोग' की राय वॉटरशेड के बारे में बहुत कुछ कहती है। 'नीति आयोग' के अनुसार, देश में 60 करोड़ लोगअत्यधिक पानी की कमी का सामना कर रहे हैं# |
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