#हरदोई:- पिहानी- सदर जहां के उर्स में उमड़ेंगे अकीदतमंद, पिहानी को वजूद देने वाले बाबा सदर जहां का उर्स, मुस्लिम एकता का प्रतीक है यह मेला#
#हरदोई:- पिहानी- सदर जहां के उर्स में उमड़ेंगे अकीदतमंद, पिहानी को वजूद देने वाले बाबा सदर जहां का उर्स, मुस्लिम एकता का प्रतीक है यह मेला#
#हरदोई: पिहानी- रविवार को धूमधाम से रौजा सदरे जहां पर परंपरागत ढंग से मेला लगेगा। उर्स पर रौजा मैदान में लगने वाले मेले में बच्चे ने जमकर मस्ती काटेंगे। बाबा सदर जहां और उनके भाई बदर जहां की कब्रों पर चादरें चढ़ाने और मन्नतें मानने का सिलसिला भी रात होने तक जारी रहेगा। शाम को मजार पर चिराग जलाए जाएंगे। इस मेले में भारी भीड़ उमड़ती है और यह मेला पहले "तरबूज वाला मेला" के नाम से भी जाना जाता था।हर साल ज्येष्ठ माह में रविवार को आयोजित किया जाता है। उर्स मेले मेंभारी भीड़, तरबूज की बिक्री खूब होती है। इसे तरबूज वाला मेला" के नाम से भी जाना जाता है#
#हुमायूं और शेर शाह सूरी के बीच सन् 1540 बिलग्राम के पास हुई जंग में हुमायूं की हार के बाद लश्कर इधर उधर बिखर गया। हुमायूं के भरोसेमंद कन्नौज के काजी अब्दुल गफूर हुमायूं को अपने साथ लेकर इसी कस्बे में आकर छिपे थे। उसे समय यहां पर जंगल था। हुमायूं ने यहां पनाह ली थी, इसलिए इस कस्बे का नाम पिन्हानी पड़ा। कालांतर में इसे पिहानी कहा जाने लगा।#
#हुमायूं के दोबारा तख्त नशीन होने पर उन्होंने अब्दुल गफूर को पंडरवा परगना के पांच गांव और यहां के जंगल उनकी स्वामी भक्ति से प्रसन्न होकर इनाम में दिए। बाद में यह जमीन नवाब सदर जहां को जागीर मेें मिली तो उन्होंने इस स्थान पर नगर आबाद किया और पिन्हानी (छिपने की जगह) नाम रखा, जो अब पिहानी के नाम से जाना जाता है। उनके इंतकाल के बाद उनके बेटे ने छोटी पिहानी और बड़ी पिहानी के बीच उनके रौजेे का निर्माण कराया। वर्तमान समय में यह ऐतिहासिक स्थल पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है#
#मुसलिम एकता का प्रतीक इस प्राचीन उर्स और मेले मेें मुसलिमों के साथ अन्य धर्मों के अकीदतमंदों ने भी चढ़ावा चढ़ाकर बाबा सदर जहां से अपनी अकीदत का इजहार करेंगे#
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