#हरदोई:- पिहानी- मैं आजाद हूं', चंद्रशेखर तिवारी यूं बने थे 'आजाद', छोटी-सी उम्र में उड़ा दिए थे अंग्रेज जज के होश#
#हरदोई:- पिहानी- मैं आजाद हूं', चंद्रशेखर तिवारी यूं बने थे 'आजाद', छोटी-सी उम्र में उड़ा दिए थे अंग्रेज जज के होश#
#हरदोई: 6 साल जेल में रहते हुए बाल गंगाधर तिलक ने लिख डाली थी 400 पन्नों की किताब 'गीता रहस्य#
#सरस्वती शिशु मंदिर में मनाया गया चंद्रशेखर आजाद व बाल गंगाधर जयंती समारोह#
#हरदोई: पिहानी- कस्बे के सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय में चंद्रशेखर आजाद व बाल गंगाधर जयंती समारोह का आयोजन किया गया। जयंती समारोह में वक्ताओं ने छात्र-छात्राओं के संम्मुख चंद्रशेखर आजाद व बाल गंगाधर के ब अपने-अपने विचार प्रकट किया। विद्यालय की प्रधानाचार्या बिंदु सिंह ने कहा कि भारत को आजाद कराने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी थी। उन्हीं महान स्वतंत्रता सेनानियों में एक नाम 'चंद्रशेखर आजाद' का है। हालांकि, इनका असली नाम चंद्रशेखर तिवारी था, लेकिन आजाद इनकी पहचान कैसे बनी इसके पीछे भी एक कहानी है। आजाद कहते थे 'दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, हम आजाद हैं और आजाद ही रहेंगे। उन्होंने कहा कि जलियांवाला बाग कांड के बाद चंद्रशेखर को समझ आ चुका था कि अंग्रेजी हुकूमत से आजादी बात से नहीं, बल्कि बंदूक से मिलेगी। शुरुआत में गांधी के अहिंसात्मक गतिविधियों में शामिल हुए, लेकिन चौरा-चौरी कांड के बाद जब आंदोलन वापस ले लिया गया तो, आजाद का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और फिर उन्होंने बनारस का रुख किया#
#वहीं दूसरी तरफ विद्यालय के कार्यालय प्रभारी समीर वाजपेई ने कहा कि स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा', लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने वर्ष 1916 में ये नारा दिया था। 23 जुलाई, 1856 को ब्रिटिश भारत में बॉम्बे प्रेसीडेंसी के रत्नागिरी जिले (वर्तमान में भारत का महाराष्ट्र) में हुआ था।वह एक भारतीय राष्ट्रवादी, पत्रकार, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लोकप्रिय नेता थे।केशव गंगाधर तिलक, जिन्हें 'भारतीय अशांति के जनक' के रूप में जाना जाता है। वह उन नेताओं में से एक हैं जो भारत में स्वराज या स्व-शासन के लिए हमेशा खड़े हुए। महात्मा गांधी ने उन्हें 'आधुनिक भारत का निर्माता' भी कहा था।तिलक ने एक मराठी और एक अंग्रेजी में दो अखबार 'मराठा दर्पण और केसरी' की शुरुआत की। इन दोनों ही अखबारों में तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। इन अखबारों को लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाने लगा था।लोकमान्य तिलक की मदद से ही महाराष्ट्र में गणेश और शिवाजी उत्सव को सामाजित तौर पर स्वीकार किया गया। इन त्योहारों के जरिए अंग्रेजों के खिलाफ जागरुकता फैलाया जाता था। उन्होंने युवाओं को अधिक से अधिक शामिल करने के लिए अखाड़े, लाठी क्लब और गाय हत्या विरोधी समितियां भी शुरू की थी#
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