#हरदोई:- बचपन पर बढ़ते मोबाइल के कब्जे पर सी वी आज़ाद के मन की बात#
#हरदोई:- बचपन पर बढ़ते मोबाइल के कब्जे पर सी वी आज़ाद के मन की बात#
#हरदोई: गांव- गिरांव की गलियों से लेकर शहर की चमकदार सड़कों तक, हर जगह बच्चों के हाथ में मोबाइल चमकता दिखता है। कभी ये हाथ मिट्टी से खेलते थे, कंचों और कबड्डी में जोर आज़माते थे, पर अब वही हाथ स्क्रीन पर अंगूठा घुमाते दिखते हैं। अब बच्चे कंचे नहीं खेलते, बल्कि कैंडी क्रश खेलते हैं#
#माता-पिता को लगता है कि बच्चा चुप है तो मोबाइल अच्छा साधन है। पढ़ाई के नाम पर स्मार्टफोन पकड़ा दिया जाता है, लेकिन असलियत ये है कि पढ़ाई से ज्यादा बच्चे गेम्स, वीडियो और रील्स की दुनिया में डूब जाते हैं। बचपन की मासूम हंसी अब नोटिफिकेशन की टनटन में खो रही है#
#चौंकाने वाली बात ये है कि छोटे-छोटे बच्चे, जिन्हें अभी किताबों में अक्षर पहचानना चाहिए, वे यूट्यूब पर कार्टून ढूंढने और मोबाइल गेम्स में लेवल पार करने में माहिर हो गए हैं। आंखों की रोशनी, दिमागी विकास और व्यवहार- सब पर इसका खतरनाक असर पड़ रहा है। बच्चे जिद्दी, चिड़चिड़े और अकेलेपन के शिकार बन रहे हैं#
#सवाल उठता है। क्या यही है नया बचपन? जहां खिलौनों की जगह मोबाइल, कहानियों की जगह कार्टून, और दोस्तों की जगह स्क्रीन! माता-पिता भी दोष से अछूते नहीं। बच्चा रोए तो मोबाइल थमा देना सबसे आसान रास्ता है, लेकिन क्या यह सुविधा आने वाले कल की बड़ी मुसीबत नहीं बनेगी#
#विशेषज्ञ मानते हैं कि लगातार मोबाइल देखने से बच्चों का दिमाग असामान्य रूप से उत्तेजित होता है। उनकी नींद कम होती है, आंखें कमजोर होती हैं और ध्यान लगाने की क्षमता घटती जाती है। खेल के मैदान सूने हो रहे हैं, और स्क्रीन के सामने बचपन कैद हो रहा है#
#WHO की गाइडलाइन कहती है कि 2 साल से छोटे बच्चों के लिए स्क्रीन बिल्कुल नहीं होनी चाहिए और 2 से 5 साल तक के बच्चों के लिए दिन में अधिकतम 1 घंटा ही स्क्रीन टाइम होना चाहिए। लेकिन असलियत यह है कि गांव- गिरांव से लेकर शहर तक बच्चे कई- कई घंटे मोबाइल पर जमे रहते हैं। यही आदत आगे चलकर गंभीर शारीरिक और मानसिक समस्याओं का कारण बन रही है#
#सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी है कि इस खतरे को गंभीरता से लें। स्कूलों को डिजिटल शिक्षा के नाम पर बच्चों को घंटों स्क्रीन से बांधने के बजाय संतुलन सिखाना होगा। और अभिभावकों को भी तय करना होगा- बच्चा मोबाइल मांगे तो प्यार और समय दें, मशीन नहीं#
#अगर आज ही रोकथाम न की गई, तो आने वाली पीढ़ी किताबों के पन्नों से नहीं, सिर्फ स्क्रीन से पहचानी जाएगी। और तब हमारे पास भविष्य नहीं, बस मोबाइल के गुलाम बच्चे होंगे#
#तो अब सवाल यही है - बचपन मोबाइल में बर्बाद होगा या हम मिलकर उसे बचा पाएंगे#
#हर रविवार पढ़िए जन सरोकारों के मुद्दों पर - सी वी आज़ाद के मन की बात#

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