👉 ईरानी जहाज़ पर मिसाइल हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतों में उछाल.
👉 ईरानी जहाज़ पर मिसाइल हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतों में उछाल
👉 शुक्रवार की सुबह लाल सागर में सऊदी तट के निकट ईरानी ऑयल टैंकर पर हुए संदिग्ध दो रॉकेट हमलों के बाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतों में अब तक 2 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है।
👉 प्रेस टीवी की रिपोर्ट के मुताबिक़, ईरान की राष्ट्रीय तेल कंपनी एनआईटीसी के ऑयल टैंकर पर सऊदी शहर जेद्दाह के तट के निकट रॉकेट हमला हुआ है। इस हमले में जहाज़ को भारी नुक़सान हुआ है और उसमें भरा हुआ तेल समुद्र में लीक करने लगा है।
एनआईटीसी का कहना है कि जेद्दा से लगभग 100 किमी की दूरी पर लाल सागर में जहाज़ में दो धमाके हुए, संभावित रूप से यह धमाके मिसाइल हमले के कारण हुए हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत 2.3 प्रतिशत से बढ़कर 60.46 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई है।
यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड की क़ीमत में 2.1 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई और यह 92 सेंट की वृद्धि के साथ 54.47 डॉलर प्रति बैरल से 54.69 डॉलर प्रति बैरल हो गया।
इससे पहले 14 सितम्बर को सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी अरामको के तेल प्रतिष्ठानों पर भयानक ड्रोन हमलों के बाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतों में उछाल आया था। msm
👉 क्या तुर्की भी सऊदी अरब की तरह अमरीका के जाल में फंस गया है?
👉 में सीरिया में संकट शुरू हुआ। उसके बाद राष्ट्रपति बशार असद के ख़िलाफ़ सैकड़ों गुट विभिन्न नामों से युद्ध में कूद पड़े।
इन गुटों का समर्थन करने वाले देश केवल एक मुद्दे पर एकमत थे और वह था असद को सत्ता से हटाना, इसके अलावा उनके बीच गहरे वैचारिक और राजनीतिक मतभेद थे, जिसके कारण वे एक दूसरे के ख़ून के प्यासे आतंकवादी गुटों का समर्थन कर रहे थे, जिसने स्थिति को इतना जटिल बना दिया था कि कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि इस देश में कौन किससे और क्यों लड़ रहा है।
अमरीका ने दाइश को जन्म दिया, जिसके लिए फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों ने धन जुटाया और तुर्की ने उसके आतंकवादियों को सीरिया तक पहुंचाने में भरपूर सहयोग किया।
👉 दूसरी तरफ़ तुर्की, क़तर और फ़ार्स खाड़ी के अन्य अरब देश एक दूसरे के ख़ून के प्यासे आतंकवादी गुटों का समर्थन कर रहे थे तो वहीं दाइश से जी जान से लड़ने वाले सीरियाई कुर्दों का अमरीका ने भरपूर समर्थन किया, जबकि वाशिंगटन का सबसे निकट सहयोगी तुर्की उन्हें आतकंवादी क़रार देकर उनका विरोध करता रहा।
हालांकि कुछ ही समय बाद आतंकवादी गुटों की पराजय और असद मोर्चे की निरंतर सफलता से स्थिति काफ़ी हद तक साफ़ होती चली गई, लेकिन कुर्दों का मुद्दा अमरीका और तुर्की के बीच मतभेद का मुख्य कारण बना रहा।
यहां तक कि पिछले हफ़्ते अचानक अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने उत्तरी सीरिया से अपने सैनिकों को बाहर निकालने का एलान करके उत्तरी सीरिया में कुर्द मीलिशिया वाईपीजी को कुचलने की तुर्क राष्ट्रपति की इच्छा को पूरा कर दिया।
ट्रम्प के इस फ़ैसले का अमरीका में जमकर विरोध हो रहा है, जिसका उन्होंने यह कहकर बचाव किया है कि अमरीका ने मध्यपूर्व की लड़ाईयों में कूदकर इतिहास की सबसे बड़ी ग़लती की थी, जिसे वह सुधार रहे हैं।
ट्रम्प की ओर से ग्रीन सिगनल मिलने के बाद बुधवार को तुर्की ने पूर्वोत्तर सीरिया पर सैन्य चढ़ाई कर दी।
👉 उसके तुरंत बाद अमरीकी कांग्रेस में सत्ताधारी दल रिपब्लिकन पार्टी और विपक्षी दल डोमोक्रेटिक पार्टी के सांसद ने तुर्की के ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंधों के लिए प्रस्ताव तैयार करना शुरू कर दिया।
इस तरह से तुर्की ट्रम्प के उस जाल में फंस गया है, जिससे निकलना उसके लिए आसान नहीं होगा। इस दलदल में फंसकर तुर्की को दोहरी मार पड़ेगी। जहां उसे बड़े पैमाने पर जानी नुक़सान होगा, वहीं पहले से डांवाडोल उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। इसके अलावा तुर्की में कुर्दों की एक बड़ी आबादी बसती है, जिसमें नाराज़गी बढ़ेगी और कुर्द एक बार फिर हथियार उठा सकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस लड़ाई से तुर्कों और कुर्दों के अलावा हर किसी को फ़ायदा पहुंचेगा।
कुर्दों के ख़िलाफ़ तुर्की के सैन्य ऑप्रेशन की घोषणा के बाद ही इस देश की करंसी डॉलर के मुक़ाबले में पिछले चार महीनों के दौरान सबसे निचले स्तर पर आ गई। इससे पहले पिछले साल रूस से एस-400 वायु रक्षा प्रणाली ख़रीदने के कारण अमरीकी प्रतिबंधों ने लीरा की कमर तोड़ दी थी, जिससे अभी वह पूरी तरह से उभर नहीं पाया था।
ईरान, सऊदी अरब, इराक़ और तुर्की मध्यपूर्व के बड़े देश हैं, जिन्हें अमरीका और पश्चिमी देश इस इलाक़े में अपने हितों के लिए सबसे बड़ा ख़तरा समझते रहे हैं। इनमें से केवल ईरान एक ऐसा देश है, जिसने अमरीका से हमेशा एक ख़ास दूरी बनाकर रखी है और वह कभी उसकी दोस्ती के झांसे में नहीं आया, इसीलिए उसने कड़े प्रतिरोध का मार्ग चुना और वह समस्त कठिनाईयों के बावजूद मज़बूत होता रहा। लेकिन जो देश अमरीका की दोस्ती के झांसे में आग गए वह आज किसी न किसी युद्ध या लड़ाई में फंसकर कमज़ोर पड़ चुके हैं। msm
👉 रूस ने पूर्वोत्तरी सीरिया पर तुर्की के हमले से दाइश के उभरने का बताया ख़तरा
अक्तूबूर 2019 को तुर्कमनिस्तान की राजधानी अश्क़ाबाद में कॉमन वेल्थ इंडिपेन्डंट स्टेट्स के शिखर सम्मेलन के दौरान (एएफ़पी के सौजन्य से)
रुसी राष्ट्रपति व्लादमीर पूतिन ने पूर्वोत्तरी सीरिया पर तुर्की के हमले की ओर से सचेत करते हुए कहा है कि इस हमले से क्षेत्र में आतंकवादी गुट दाइश फिर से उभर सकता है।
उन्होंने शुक्रवार को तुर्कमनिस्तान के दौरे पर राजधानी अश्क़ाबाद में कॉमन वेल्थ इंडिपेन्डंट स्टेट्स की शिखर बैठक के अवसर पर टेलीविजन पर भाषण में कहा कि पूर्वोत्तरी सीरिया में गिरफ़्तार तकफ़ीरी आतंकी, तुर्की के हमले की वजह से जेल से भाग सकते हैं।
रूसी न्यूज़ एजेंसी इंटरफ़ैक्स के मुताबिक़, पूतिन ने कहाः "मैं निश्चित तौर पर नहीं कह सकता कि तुर्क सेना कितनी जल्दी इसे अपने निंयत्रण में कर पाएगी। यह वास्तव में हमारे लिए ख़तरा है।"
तुर्क राष्ट्रपति रजब तय्यब अर्दोग़ान ने मंलगवार को एलान किया कि देश की सेना और तुर्की द्वारा समर्थित मिलिटेंट्स फ़्री सीरियन आर्मी ने पूर्वोत्तरी सीरिया में हमले शुरु किए हैं।
अर्दोग़ान ने दावा किया कि इस हमले में दाइश में शामिल मिलिटेंट्स और कुर्द मिलिटेंट्स के ठिकानों को निशाना बनाया जाएगा। अर्दोग़ान ने इस हमले का लक्ष्य पूर्वोत्तरी सीरिया के सीमावर्ती इलाक़े में सेफ़ज़ोन बनाना और वहा लाखों शरणार्थियों को बसाना बताया है।
अंकारा अमरीका द्वारा समर्थित वाईपीजी को आतंकवादी संगठन कहता है जो तुर्की में उभरने वाले मिलिटेंट्स गुट पीकेके की शाखा है। पीकेके तुर्की में 1984 से स्वायत्त कुर्द इलाक़े की स्थापना की कोशिश कर रहा है।(MAQ/N)
👉 कुर्दों के बाद अब अरबों और इस्राईलियों से भी पल्ला झाड़ रहे हैं ट्रम्प, क्या आरामको हमले से ट्रम्प ने इस फ़ैसले में जल्दी की? इस्राईलियों को क्यों ख़तरे में नज़र आ रहा है अपना डिमोना परमाणु केन्द्र? ईरान के सुप्रीम लीडर का फ़ोन अब बेहद व्यस्त हो जाएगा
👉 अरब जगत के मशहूर टीकाकार अब्दुल बारी अतवान का जायज़ाः अमरीका ने पहले तो सीरिया में कुर्द फ़ोर्सेज़ का गठन करके उन्हें अपने सैनिक मिशन में प्रयोग किया और अब तुर्की ने हमला शुरू किया है तो वह कुर्दों को छोड़कर किनारे हो गया है। इसके बाद अब ट्रम्प ने ज़्यादा ज़ोरदार थप्पड़ अपने अरब घटकों और शायद इस्राईलियों को भी जड़ दिया है।
ट्रम्प ने बुधवार को अपने एक चौंका देने वाले ट्वीट में लिखा कि मध्यपूर्व में हस्तक्षेप अमरीका के इतिहास का सबसे बुरा फ़ैसला था। हम अपने प्यारे सैनिकों को धीरे धीरे सुरक्षित रूप में वतन वापस ला रहे हैं। मध्यपूर्व की लड़ाइयों ने अमरीकी ख़ज़ाने को आठ ट्रिलियन डालर का नुक़सान पहुंचाया है।
अमरीकी सपोर्ट पर भरोसा करने वाली अरब सरकारों के लिए इस वाक्य का क्या मतलब है जिन्होंने ट्रम्प को ख़ुश करने के लिए कई सौ अरब डालर ख़र्च कर दिए और रियाज़ यात्रा में उनके लिए रेड कारपेट बिछाया? हम यहां विशेष रूप से सऊदी अरब और इमारात की बात कर रहे हैं।
पैग़ाम साफ़ है, इसमें कुछ विवरण देने की ज़रूरत नहीं है। अमरीका का पैग़ाम यह है कि ईरान के पास जाओ, सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई का फ़ोन नंबर मालूम करो या राष्ट्रपति रूहानी या फिर विदेश मंत्री ज़रीफ़ का फ़ोन नंबर पता करके उनसे बात करो और समझौता करके यमन युद्ध से बाहर निकलने का रास्ता खोजो। हमसे किसी चीज़ की उम्मीद न रखो हम बस हमदर्दी के दो चार शब्द बोल देंगे इसके अलावा कुछ नहीं करेंगे।
ट्रम्प ने कुर्दों को जिस तरह धोखा दिया है वही चीज़ वह कुछ सरकारों के साथ भी कर सकते हैं, इस सच्चाई को अमरीका के घटकों में सबसे पहले इस्राईलियों ने समझा है और वहां शोक छा गया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ में इस्राईल के पूर्व राजदूत डौरी गोल्ड ने कहा कि मैं आज ख़ुद को एक कुर्द महसूस कर रहा हूं, जब अमरीकियों ने कुर्दों को अकेला छोड़ दिया तो हमें भी अकेला क्यों नहीं छोड़ सकते? गोल्ड अमरीका को भी अच्छी तरह समझते हैं और इस्राईल के अरब घटकों को भी अच्छी तरह जानते हैं। वह सऊदी अरब के पूर्व इंटैलीजेन्स चीफ़ तुर्की फ़ैसल इसी तरह पूर्व जनरल अनवर इश्क़ी से कई बार मुलाक़ातें कर चुके हैं। इस्राईलियों में इस समय यह विचार आम हो चुका है कि ट्रम्प ने मध्यपूर्व के इलाक़े से राजनैतिक और सामरिक रूप से पूरी तरह बाहर निकल जाने का फ़ैसला कर लिया है और अनाथ बन चुके अपने घटकों को उनके हाल पर छोड़ने जा रहे हैं।
अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के इस फ़ैसले के कुछ कारण हैं।
पहला कारण यह है कि अमरीका के पास अब तेल बहुत अधिक हो गया है वह तेल का निर्यात भी करने लगा है अतः उसे मध्यपूर्व के तेल की ज़रूरत नहीं है।
दूसरा कारण यह है कि ईरान के नेतृत्व में बनने वाले इस्लामी प्रतिरोधक मोर्चे की ताक़त बहुत बढ़ चुकी है और चीन की आर्थिक व सामरिक शक्ति में लगातार वृद्धि हो रही है। कुछ ही वर्षों में डालर का प्रभुत्व समाप्त होने वाला है।
तीसरा कारण यह है कि अमरीका ने सऊदी अरब और इस्राईल की रक्षा के लिए जो मिसाइल ढाल व्यवस्था स्थापित कर रखी थी वह पूरी तरह फ़ेल हो गई है। बक़ैक़ और ख़रैस में आरामको के तेल प्रतिष्ठानों पर होने वाले हमलों से इस सिस्टम की नाकामी पूरी तरह खुलकर सामने आ गई हैं। दूसरी ओर ईरान ने हुरमुज़ के इलाक़े में अमरीकी ड्रोन को मार गिराया।
चौथा कारण यह है कि अमरीकी प्रतिबंध ईरान, चीन, रूस और वेनेज़ोएला को झुका नहीं पाए बल्कि इन देशों ने एक संयुक्त गठजोड़ बना लिया है जिसमें दूसरे देश भी शामिल हो सकते हैं।
पांचवां कारण यह है कि ट्रम्प ने 2015 के चुनावी कैंपेन में कहा था कि मध्यपूर्व से वह सारे अमरीकी सैनिकों को अमरीका वापस लाएंगे। उन्होंने इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान युद्ध का विरोध किया मगर उन्होंने अरब देशों से सैकड़ों अरब डालर वसूलने के लिए अपना फ़ैसला टाल दिया था। लेकिन अब हालत यह है कि अरब सरकारों के ख़ज़ाने ख़ाली हो गए हैं।
अमरीका ने यह फ़ैसला जल्दी में इसलिए किया कि उसे सऊदी अरब के भीतर आरामको के तेल प्रतिष्ठानों पर होने वाले हमले ने डरा दिया। यह बात अमरीकी और इस्राईली दोनों ही मान रहे हैं कि यह हमला जिसने किया है वह हक़ीक़त में असाधारण दक्षता और कौशल रखने वाले लोग हैं।
बीस मिसाइल और ड्रोन विमान कई सौ किलोमीटर दूर से चलकर अपने लक्ष्य को बड़े सटीक रूप से ध्वस्त कर देते हैं, यह देखकर इस्राईली बुरी तरह डर गए हैं क्योंकि उन्हें अच्छी तरह पता है कि अमरीकी मिसाइल ढाल व्यवस्था पैट्रियट और राडार तैनात होने के बावजूद जब यह मिसाइल और ड्रोन अपने लक्ष्य तक पहुंच गए तो इस्राईल के डिमोना परमाणु केन्द्र तक क्यों नहीं पहुंच सकते।
अब तो हिज़्बुल्लाह को डेढ़ लाख मिसाइलों की भी ज़रूरत नहीं है वह कुछ दर्जन मिसाइलों की मदद से इस्राईल के सारे हवाई अड्डों, रेल स्टेशनों, बिजली के केन्द्रों, जल प्रतिष्ठानों, कारखानों अमोनिया के भंडारों और नक़्ब मरुस्थल में डिमोना परमाणु केन्द्र को निशाना बना सकता है।
👉 अबदुल बारी अतवान
हम एक बार फिर यह बात कह रहे हैं कि आने वाले दिनों और हफ़्तों में ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई का फ़ोन बहुत व्यस्त रहेगा। मध्यपूर्व के बहुत से शासक उनकी हमदर्दी हासिल करने के लिए लाइन में लगे रहेंगे। इनमें नेतनयाहू हरगिज़ नहीं होंगे क्योंकि तेहरान में कोई भी उनका फ़ोन रिसीव करने वाला नहीं है। बल्कि शायद उनका जवाब मिसाइलों से दिया जाए।
👉 सद्दाम और अर्दोगान, आरंभ एक जैसा तो क्या होगा अंजाम? ... कुछ रोचक तथ्य...
नये तुर्की रिपब्लकिन के संस्थापक " मुस्तफा अतातुर्क" का एक कथन है जिसे तुर्की की यूनिवर्सिटियों में भी पढ़ाया जाता है। इसमें " अतातुर्क" कहते हैं कि " युद्ध आरंभ करना अपराध है जब तक कि देश की जनता का जीवन खतरे में न पड़ जाए।"
निश्चित रूप से राष्ट्रपति अर्दोगान को यह कथन बहुत अच्छी तरह से याद होगा लेकिन वह " ओटोमन " या उस्मानी हैं इस लिए इस कथन के पालन से इन्कार कर दिया। यही नहीं उन्होंने अपने नये घटक, विलादमीर पुतीन की बात भी नहीं मानी जिन्होंने फोन करके उनसे कहा था कि सीरिया के पूर्वोत्तरी भाग पर हमले से पहले ठंडे दिमाग से सोच विचार कर लें।
कुर्दों की समस्या एक ही है चाहे वह उत्तरी इराक़ के हों या उत्तरी सीरिया के, वह हमेशा अपने अरब घटकों के दुश्मनों विशेषकर अमरीकियों और इस्राईलियों से हाथ मिलाते हैं। उन्हें अपनी राष्ट्रीयता याद नहीं रहती मगर जब धोखेबाज़ घटक अमरीका उनकी पीठ में छुरा घोंपता है तो उन्हें अपने देश की याद आती है।
बाद तुर्की ने पहले भी कुर्दों पर धावा बोलने की तैयारी की थी। कुर्दों को अपने देश और अपनी सरकार की याद आयी थी और सीरिया और रूस से मदद की गुहार करने लगे थे।
सीरिया की सरकार ने कुर्दों की गुहार और रुख का स्वागत किया था और तुर्की के हमले के मुक़ाबले में उनकी मदद व समर्थन का वादा किया लेकिन कुर्दों ने सीरिया की केन्द्र सरकार के साथ किये गये हर समझौते को तोड़ दिया और अमरीका की गोद में बैठ गये। इन कुर्दों ने अमरीका के साथ मिल कर सीरियाई सेना के खिलाफ युद्ध लड़ा लेकिन अब जब उन्हें ज़रूरत पड़ती है तो सीरियाई बन जाते हैं जिनकी मदद करना सीरिया की सरकार का कर्तव्य होता है और जब अमरीका के आशीर्वाद का इशारा मिलता है तो कुर्द बन जाते हैं।
राष्ट्रपति अर्दोगान ने खतरनाक खेल शुरु किया है विशेषकर इस लिए भी कि उन्हें अपने इस क़दम के लिए रूस और ईरान का समर्थन नहीं प्राप्त है बल्कि यह दोनों तो इस हमले का विरोध कर रहे हैं। हमें यह महसूस होता है कि इस खतरनाक राह के अंत में तुर्की को ही नुक़सान उठाना पड़ेगा और इस से अर्दोगान को भी डरना चाहिए।
हम इस लिए यह कह रहे हैं क्योंकि अर्दोगान और सद्दाम में बहुत सी बातें मिलती जुलती हैं। सद्दाम एक बेहद महत्वकांक्षी नेता थे और उनकी इस महत्वकांक्षा ने उन्हें इराक़ के इतिहास का क्रूर तानाशाह बना दिया था। अमरीका ने सद्दाम की महत्वकांक्षा और पूरे इलाक़े पर राज करने के सपने को पंख देते हुए पहले ईरान पर हमला करवाया और जब वर्षों के बाद यह स्पष्ट हो गया कि अब सद्दाम को निचोड़ा जा चुका है और अमरीका के किसी काम के नहीं है तो फिर कुवैत पर हमला करवा दिया और इसमें उस समय बगदाद में मौजूद अमरीकी राजदूत ने मुख्य भूमिका निभाई। कुवैत में बिछाए गये अमरीकी जाल में सद्दाम फंस गये और फिर उसके बाद जो कुछ हुआ उससे दुनिया अवगत है।
तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोगान को भी बहुत पहले से सद्दाम की तरह महत्वकांक्षी कहा जा रहा है। उनके राजनीतिक सफर और " ओटोमन साम्राज्य" की वापसी के लिए उनकी कोशिशों में अर्दोगान की यह छवि बहुत अच्छी तरह से नज़र आती है। इलाक़े पर राज करने और इलाक़े की सब से बड़ी शक्ति बनने की सद्दाम वाली इच्छा, अर्दोगान के मन में भी बहुत पहले से जाग चुकी है। इसी इच्छा की पूर्ति के लिए उन्होंने सीरिया के खिलाफ, अमरीका, इस्राईल और सऊदी अरब सहित उनके क्षेत्रीय घटकों से हाथ मिलाया था लेकिन जब, रूस, सीरिया, ईरान और उसके घटकों ने इस साज़िश को नाकाम बना दिया तो भी अर्दोगान हार मानने पर तैयार नहीं हुए, अमरीका का साथ मिला तो हिम्मत बढ़ी और रूस का युद्धक विमान मार गिराया, मगर अमरीका ने साथ नहीं दिया तो रूस के सामने हाथ जोड़ दिये और माफी मांग ली और फिर उसे खुश करने के लिए रूस का एस़-400 एन्टी मिसाइल सिस्टम खरीद लिया मगर इससे अमरीका नाराज़ हो गया और उन्हें रोकने की भरपूर कोशिश की मगर अब अर्दोगान की मजबूरी रही हो या अमरीका से गुस्सा, उन्होंने रूस से एस-400 खरीद लिया और बहुत से टीककारों के अनुसार इसी के बाद अमरीका ने उनके लिए उत्तरी सीरिया में जाल बिछाने का फैसला कर लिया। इस इलाक़े में कुर्द विद्रोही रहते हैं जिन्हें सबक़ सिखाकर तुर्की में राष्ट्रीय नायक और इलाक़े में ताकतवर नेता बनने का सपना अर्दोगान बहुत पहले से देखते आए हैं। अमरीका ने इस इलाक़े में तैनात अपने सैनिक वापस बुलाकर अर्दोगान के लिए जाल फैला दिया और उस पर तुर्की के घोर विरोधी कुर्दों का दाना डाल दिया, अर्दोगान तेज़ी से जाल की तरफ बढ़ रहे हैं, अंजाम क्या होगा? (Q.A.)
👉 तेल टैंकर पर हमले के ज़िम्मेदार ख़मियाज़ा भुगतने के लिए तय्यार रहे, ईरान की चेतावनी
👉 ईरान ने कहा है कि तेल टैंकर पर हमले का ख़तरनाक खेल शुरु करने वालों पर इसके अंजाम की ज़िम्मेदारी है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्बास मूसवी ने रेड सी में ईरानी तेल टैंकर पर हमले की प्रतिक्रिया में कहा कि इस हमले की नतीजे में क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण सहित दूसरी ज़िम्मेदारियां इस ख़तरनाक खेल खेलने वालों के कांधे पर हैं।
उन्होंने कहा कि ईरान की राष्ट्रीय तेल कंपनी की जांच दर्शाती है कि शुक्रवार की सुबह लाल सागर के पूर्वी भाग में ईरानी तेल टैंकर गुज़रने वाले कोरिडोर के निकट आधे घंटे के अंतराल में 2 बार हमलों का निशाना बना जिससे इस तेल टैंकर को नुक़सान पहुंचा।
अब्बास मूसवी ने तेल टैंकर के नियंत्रण में होने का उल्लेख करते हुए कहा कि ख़ुश क़िस्मती से टैंकर के कर्मी दल को कोई नुक़सान नहीं पहुंचा और तेल टैंकर की हालत स्थिर है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में रेड सी में ईरानी तेल टैंकरों पर हमले हुए हैं जिनकी जांच जारी है।
अब्बास मूसवी ने ईरान के तेल टैंकर की टंकी से रिसने वाले तेल की वजह से क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण पर चिंता जताते हुए कहा कि इस ख़तरनाक हमले में लिप्त तत्वों का पता लगाने के लिए जांच जारी है जिसके नतीजे का बाद में एलान होगा। (MAQ/N)
👉 ईरान से इस्राईल की 5 बड़ी हार... बताया इस्राईली टीकाकार ने ...
👉 इस्राईली टीकाकार, लीमूर समीमियान दाराश ने अपनी एक लेख में ईरान के सामने इस्राईल की 5 बुनियादी हार का जायज़ा लिया है।
लीमूर अवैध अधिकृत बैतुलमुक़द्दस में हेब्रू यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर हैं। वह इस्राईल हायोम समाचार पत्र में लिखती हैं कि ईरान के सामने इस्राईल की पहली हार तीन चरणों में पूरी हुई। पहला चरण सन 2010 में थी जब इस्राईली प्रधानमंत्री नेतेन्याहू और रक्षा मंत्री एहुद बाराक द्वारा ईरान के खिलाफ सैन्य अभियान के प्रस्ताव का इस्राईली सेना ने विरोध किया। विरोध करने वालों में मोसाद के तत्कालीन प्रमुख " मईर डेगान" और तत्कालीन चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ " गाबी इश्कनाज़ी" आगे-आगे थे।
हिब्रू यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र पढ़ाने वाली प्रोफेसर समीमियान लिखती है कि दूसरा चरण वह था जब इस्राईली सेना के तत्कालीन चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ " बेनी गान्तेज़ " ने सन 2011 में एक फिर ईरान पर सैन्य आक्रमण के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। पहली हार का तीसरा चरण वह था जब ईरान पर सैन्य आक्रमण के समय को लेकर नेतेन्याहू और एहुद बाराक एक दूसरे से भिड़ गये और सैन्य आक्रमण टल गया।
इस्राईली टीकाकार, लीमूर समीमियान दाराश कहती हैं कि ईरान के सामने इस्राईल की दूसरी पराजय उस समय हुई जब ईरान के साथ दुनिया ने परमाणु समझौता किया जो उनके अनुसार ईरान द्वारा परमाणु हथियारों की तैयारी में बाधा नहीं था बल्कि उसे कुछ वर्षों के लिए विलंबित करने वाला ही था। उन्होंने दावा किया कि इस समझौते के बाद यही समझा जाता रहा कि ईरान अगर चाहे तो एक साल के भीतर परमाणु बम बना सकता है।
इस्राईली टीकाकार, लीमूर समीमियान दाराश ने लिखा है कि इस्राईल, हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा यहां तक कि प्रस्ताव क्रमांक 2331 जारी होगा जिसकी वजह से ईरान को यह अनुमति मिल गयी कि वह वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए यूरेनियम का संवर्धन करके एक परमाणु देश बन जाए। इस प्रकार प्रतिबंध खत्म किये जाने से ईरान को अपने 100 अरब डॉलर वापस मिले गये जिसका उसकी अर्थ व्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
इस्राईली टीकाकार, लीमूर समीमियान के अनुसार ईरान के सामने, इस्राईल की तीसरी हार, ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर उसकी प्रतिक्रिया में नज़र आयी। नेतेन्याहू ने इस प्रकार से इस समझौते का विरोध किया जैसे वह अपनी व्यक्तिगत राय प्रकट कर रहे हों। उस समय उनके प्रतिस्पर्धी " इस्हाक़ हर्त्ज़ोविग" ने कहा था कि नेतेन्याहू, ईरान के परमाणु समझौते के विरोध में सीमा पार कर रहे हैं। इसी प्रकार एहुद ओल्मर्ट और याईज़ लापीद ने कहा कि नेतेन्याहू ने उस समय अमरीकी कांग्रेस में अपने भाषण से तेल अबीव व वाशिंग्टन के संबंधों को खराब कर दिया।
ईरान द्वारा परमाणु समझौते के पालन की परमाणु ऊर्जा की अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी आईएईए द्वारा बार बार पुष्टि के बावजूद यह इस्राईली टीकाकार लिखती हैं कि ईरान के सामने इस्राईल की चौथी हार यह थी कि ईरान ने समझौते का उल्लंघन किया। समझौते के अनुसार 8 टन संवर्धित यूरेनियम को ईरान से बाहर निकालना था लेकिन इस बात का कोई सुबूत नहीं है कि ईरान ने यह काम किया था।
इस्राईली टीकाकार, लीमूर समीमियान दाराश लिखती हैं कि ईरान के सिलसिले में इस्राईल की पांचवी हार उस समय हुई जब इस्राईल ने, ईरान के सैन्य परमाणु कार्यक्रम से पर्दा हटाया, अमरीका इस समझौते से निकल गया और ईरान पर दोबारा प्रतिबंध लगा दिये गये। इन सब के बावजूद वरिष्ठ पत्रकार और संसद के वामपंथी सदस्य यथावत इस्राईली सरकार को कटघरे में खड़ा किये हैं।
इस्राईली टीकाकार, लीमूर समीमियान लिखती हैं कि ईरान के सामने यह पांचों पराजय इस लिए इस्राईल को देखना पड़ी हैं क्योंकि इस्राईली राजनेता, अपने राजनीतिक व दलीय प्रतिस्पर्धाओं को किसी भी अन्य युद्ध से अधिक महत्व देते हैं।
याद रहे हालिया दिनों में इस्राईली मीडिया में ईरान के सामने इस्राईल की नाकामियों पर खुल कर चर्चा हो रही है।
इसी तरह यह भी कहा जा रहा है कि इस्राईल, ईरान के सामने बेहद असुरक्षित है और इस्राईल के पास न तो ईरान के ड्रोन विमानों को रोकने का कोई तरीका है और न ही उसके मिसाइलों से बचने का कोई रास्ता है।(Q.A.)
👉 रोयटर्ज़ः अमरीका हज़ारों सैनिक सऊदी अरब भेज रहा है!
👉 ब्रिटिश न्यूज़ एजेंसी रोयटर्ज़ ने शुक्रवार को जानकार सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि सऊदी अरब की आरामको तेल कंपनी के प्रतिष्ठानों पर होने वाले बड़े ड्रोन और मिसाइल हमले के बाद अमरीका कई हज़ार सैनिक सऊदी अरब भेजने का इरादा रखता है।
पेंटागोन ने रोयटर्ज़ के पत्रकार द्वारा टिप्पणी मांगे जाने पर औपचारिक रूप से बयान देने से इंकार किया लेकिन कुछ जानकार सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सैनिकों को सऊदी अरब भेजने का फ़ैसला हो चुका है।
ज्ञात रहे कि सऊदी अरब की आरामको तेल कंपनी पर होने वाले बड़े हमले ने सऊदी अरब की अर्थ व्यवस्था और पूरे तेल सेक्टर में हलचल मचा दी। सऊदी अरब का तेल उत्पादन आधा हो गया।
रिपोर्टों से पता चलता है कि हमले के बाद से अब तक सऊदी अरब को कम से कम दो अरब डालर का नुक़सान हो चुका है
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सम्पादक: खोज जारी है न्यूज:- चैनल: की खास खबर
👉 शुक्रवार की सुबह लाल सागर में सऊदी तट के निकट ईरानी ऑयल टैंकर पर हुए संदिग्ध दो रॉकेट हमलों के बाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतों में अब तक 2 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है।
👉 प्रेस टीवी की रिपोर्ट के मुताबिक़, ईरान की राष्ट्रीय तेल कंपनी एनआईटीसी के ऑयल टैंकर पर सऊदी शहर जेद्दाह के तट के निकट रॉकेट हमला हुआ है। इस हमले में जहाज़ को भारी नुक़सान हुआ है और उसमें भरा हुआ तेल समुद्र में लीक करने लगा है।
एनआईटीसी का कहना है कि जेद्दा से लगभग 100 किमी की दूरी पर लाल सागर में जहाज़ में दो धमाके हुए, संभावित रूप से यह धमाके मिसाइल हमले के कारण हुए हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत 2.3 प्रतिशत से बढ़कर 60.46 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई है।
यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड की क़ीमत में 2.1 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई और यह 92 सेंट की वृद्धि के साथ 54.47 डॉलर प्रति बैरल से 54.69 डॉलर प्रति बैरल हो गया।
इससे पहले 14 सितम्बर को सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी अरामको के तेल प्रतिष्ठानों पर भयानक ड्रोन हमलों के बाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतों में उछाल आया था। msm
👉 क्या तुर्की भी सऊदी अरब की तरह अमरीका के जाल में फंस गया है?
👉 में सीरिया में संकट शुरू हुआ। उसके बाद राष्ट्रपति बशार असद के ख़िलाफ़ सैकड़ों गुट विभिन्न नामों से युद्ध में कूद पड़े।
इन गुटों का समर्थन करने वाले देश केवल एक मुद्दे पर एकमत थे और वह था असद को सत्ता से हटाना, इसके अलावा उनके बीच गहरे वैचारिक और राजनीतिक मतभेद थे, जिसके कारण वे एक दूसरे के ख़ून के प्यासे आतंकवादी गुटों का समर्थन कर रहे थे, जिसने स्थिति को इतना जटिल बना दिया था कि कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि इस देश में कौन किससे और क्यों लड़ रहा है।
अमरीका ने दाइश को जन्म दिया, जिसके लिए फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों ने धन जुटाया और तुर्की ने उसके आतंकवादियों को सीरिया तक पहुंचाने में भरपूर सहयोग किया।
👉 दूसरी तरफ़ तुर्की, क़तर और फ़ार्स खाड़ी के अन्य अरब देश एक दूसरे के ख़ून के प्यासे आतंकवादी गुटों का समर्थन कर रहे थे तो वहीं दाइश से जी जान से लड़ने वाले सीरियाई कुर्दों का अमरीका ने भरपूर समर्थन किया, जबकि वाशिंगटन का सबसे निकट सहयोगी तुर्की उन्हें आतकंवादी क़रार देकर उनका विरोध करता रहा।
हालांकि कुछ ही समय बाद आतंकवादी गुटों की पराजय और असद मोर्चे की निरंतर सफलता से स्थिति काफ़ी हद तक साफ़ होती चली गई, लेकिन कुर्दों का मुद्दा अमरीका और तुर्की के बीच मतभेद का मुख्य कारण बना रहा।
यहां तक कि पिछले हफ़्ते अचानक अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने उत्तरी सीरिया से अपने सैनिकों को बाहर निकालने का एलान करके उत्तरी सीरिया में कुर्द मीलिशिया वाईपीजी को कुचलने की तुर्क राष्ट्रपति की इच्छा को पूरा कर दिया।
ट्रम्प के इस फ़ैसले का अमरीका में जमकर विरोध हो रहा है, जिसका उन्होंने यह कहकर बचाव किया है कि अमरीका ने मध्यपूर्व की लड़ाईयों में कूदकर इतिहास की सबसे बड़ी ग़लती की थी, जिसे वह सुधार रहे हैं।
ट्रम्प की ओर से ग्रीन सिगनल मिलने के बाद बुधवार को तुर्की ने पूर्वोत्तर सीरिया पर सैन्य चढ़ाई कर दी।
👉 उसके तुरंत बाद अमरीकी कांग्रेस में सत्ताधारी दल रिपब्लिकन पार्टी और विपक्षी दल डोमोक्रेटिक पार्टी के सांसद ने तुर्की के ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंधों के लिए प्रस्ताव तैयार करना शुरू कर दिया।
इस तरह से तुर्की ट्रम्प के उस जाल में फंस गया है, जिससे निकलना उसके लिए आसान नहीं होगा। इस दलदल में फंसकर तुर्की को दोहरी मार पड़ेगी। जहां उसे बड़े पैमाने पर जानी नुक़सान होगा, वहीं पहले से डांवाडोल उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। इसके अलावा तुर्की में कुर्दों की एक बड़ी आबादी बसती है, जिसमें नाराज़गी बढ़ेगी और कुर्द एक बार फिर हथियार उठा सकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस लड़ाई से तुर्कों और कुर्दों के अलावा हर किसी को फ़ायदा पहुंचेगा।
कुर्दों के ख़िलाफ़ तुर्की के सैन्य ऑप्रेशन की घोषणा के बाद ही इस देश की करंसी डॉलर के मुक़ाबले में पिछले चार महीनों के दौरान सबसे निचले स्तर पर आ गई। इससे पहले पिछले साल रूस से एस-400 वायु रक्षा प्रणाली ख़रीदने के कारण अमरीकी प्रतिबंधों ने लीरा की कमर तोड़ दी थी, जिससे अभी वह पूरी तरह से उभर नहीं पाया था।
ईरान, सऊदी अरब, इराक़ और तुर्की मध्यपूर्व के बड़े देश हैं, जिन्हें अमरीका और पश्चिमी देश इस इलाक़े में अपने हितों के लिए सबसे बड़ा ख़तरा समझते रहे हैं। इनमें से केवल ईरान एक ऐसा देश है, जिसने अमरीका से हमेशा एक ख़ास दूरी बनाकर रखी है और वह कभी उसकी दोस्ती के झांसे में नहीं आया, इसीलिए उसने कड़े प्रतिरोध का मार्ग चुना और वह समस्त कठिनाईयों के बावजूद मज़बूत होता रहा। लेकिन जो देश अमरीका की दोस्ती के झांसे में आग गए वह आज किसी न किसी युद्ध या लड़ाई में फंसकर कमज़ोर पड़ चुके हैं। msm
👉 रूस ने पूर्वोत्तरी सीरिया पर तुर्की के हमले से दाइश के उभरने का बताया ख़तरा
अक्तूबूर 2019 को तुर्कमनिस्तान की राजधानी अश्क़ाबाद में कॉमन वेल्थ इंडिपेन्डंट स्टेट्स के शिखर सम्मेलन के दौरान (एएफ़पी के सौजन्य से)
रुसी राष्ट्रपति व्लादमीर पूतिन ने पूर्वोत्तरी सीरिया पर तुर्की के हमले की ओर से सचेत करते हुए कहा है कि इस हमले से क्षेत्र में आतंकवादी गुट दाइश फिर से उभर सकता है।
उन्होंने शुक्रवार को तुर्कमनिस्तान के दौरे पर राजधानी अश्क़ाबाद में कॉमन वेल्थ इंडिपेन्डंट स्टेट्स की शिखर बैठक के अवसर पर टेलीविजन पर भाषण में कहा कि पूर्वोत्तरी सीरिया में गिरफ़्तार तकफ़ीरी आतंकी, तुर्की के हमले की वजह से जेल से भाग सकते हैं।
रूसी न्यूज़ एजेंसी इंटरफ़ैक्स के मुताबिक़, पूतिन ने कहाः "मैं निश्चित तौर पर नहीं कह सकता कि तुर्क सेना कितनी जल्दी इसे अपने निंयत्रण में कर पाएगी। यह वास्तव में हमारे लिए ख़तरा है।"
तुर्क राष्ट्रपति रजब तय्यब अर्दोग़ान ने मंलगवार को एलान किया कि देश की सेना और तुर्की द्वारा समर्थित मिलिटेंट्स फ़्री सीरियन आर्मी ने पूर्वोत्तरी सीरिया में हमले शुरु किए हैं।
अर्दोग़ान ने दावा किया कि इस हमले में दाइश में शामिल मिलिटेंट्स और कुर्द मिलिटेंट्स के ठिकानों को निशाना बनाया जाएगा। अर्दोग़ान ने इस हमले का लक्ष्य पूर्वोत्तरी सीरिया के सीमावर्ती इलाक़े में सेफ़ज़ोन बनाना और वहा लाखों शरणार्थियों को बसाना बताया है।
अंकारा अमरीका द्वारा समर्थित वाईपीजी को आतंकवादी संगठन कहता है जो तुर्की में उभरने वाले मिलिटेंट्स गुट पीकेके की शाखा है। पीकेके तुर्की में 1984 से स्वायत्त कुर्द इलाक़े की स्थापना की कोशिश कर रहा है।(MAQ/N)
👉 कुर्दों के बाद अब अरबों और इस्राईलियों से भी पल्ला झाड़ रहे हैं ट्रम्प, क्या आरामको हमले से ट्रम्प ने इस फ़ैसले में जल्दी की? इस्राईलियों को क्यों ख़तरे में नज़र आ रहा है अपना डिमोना परमाणु केन्द्र? ईरान के सुप्रीम लीडर का फ़ोन अब बेहद व्यस्त हो जाएगा
👉 अरब जगत के मशहूर टीकाकार अब्दुल बारी अतवान का जायज़ाः अमरीका ने पहले तो सीरिया में कुर्द फ़ोर्सेज़ का गठन करके उन्हें अपने सैनिक मिशन में प्रयोग किया और अब तुर्की ने हमला शुरू किया है तो वह कुर्दों को छोड़कर किनारे हो गया है। इसके बाद अब ट्रम्प ने ज़्यादा ज़ोरदार थप्पड़ अपने अरब घटकों और शायद इस्राईलियों को भी जड़ दिया है।
ट्रम्प ने बुधवार को अपने एक चौंका देने वाले ट्वीट में लिखा कि मध्यपूर्व में हस्तक्षेप अमरीका के इतिहास का सबसे बुरा फ़ैसला था। हम अपने प्यारे सैनिकों को धीरे धीरे सुरक्षित रूप में वतन वापस ला रहे हैं। मध्यपूर्व की लड़ाइयों ने अमरीकी ख़ज़ाने को आठ ट्रिलियन डालर का नुक़सान पहुंचाया है।
अमरीकी सपोर्ट पर भरोसा करने वाली अरब सरकारों के लिए इस वाक्य का क्या मतलब है जिन्होंने ट्रम्प को ख़ुश करने के लिए कई सौ अरब डालर ख़र्च कर दिए और रियाज़ यात्रा में उनके लिए रेड कारपेट बिछाया? हम यहां विशेष रूप से सऊदी अरब और इमारात की बात कर रहे हैं।
पैग़ाम साफ़ है, इसमें कुछ विवरण देने की ज़रूरत नहीं है। अमरीका का पैग़ाम यह है कि ईरान के पास जाओ, सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई का फ़ोन नंबर मालूम करो या राष्ट्रपति रूहानी या फिर विदेश मंत्री ज़रीफ़ का फ़ोन नंबर पता करके उनसे बात करो और समझौता करके यमन युद्ध से बाहर निकलने का रास्ता खोजो। हमसे किसी चीज़ की उम्मीद न रखो हम बस हमदर्दी के दो चार शब्द बोल देंगे इसके अलावा कुछ नहीं करेंगे।
ट्रम्प ने कुर्दों को जिस तरह धोखा दिया है वही चीज़ वह कुछ सरकारों के साथ भी कर सकते हैं, इस सच्चाई को अमरीका के घटकों में सबसे पहले इस्राईलियों ने समझा है और वहां शोक छा गया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ में इस्राईल के पूर्व राजदूत डौरी गोल्ड ने कहा कि मैं आज ख़ुद को एक कुर्द महसूस कर रहा हूं, जब अमरीकियों ने कुर्दों को अकेला छोड़ दिया तो हमें भी अकेला क्यों नहीं छोड़ सकते? गोल्ड अमरीका को भी अच्छी तरह समझते हैं और इस्राईल के अरब घटकों को भी अच्छी तरह जानते हैं। वह सऊदी अरब के पूर्व इंटैलीजेन्स चीफ़ तुर्की फ़ैसल इसी तरह पूर्व जनरल अनवर इश्क़ी से कई बार मुलाक़ातें कर चुके हैं। इस्राईलियों में इस समय यह विचार आम हो चुका है कि ट्रम्प ने मध्यपूर्व के इलाक़े से राजनैतिक और सामरिक रूप से पूरी तरह बाहर निकल जाने का फ़ैसला कर लिया है और अनाथ बन चुके अपने घटकों को उनके हाल पर छोड़ने जा रहे हैं।
अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के इस फ़ैसले के कुछ कारण हैं।
पहला कारण यह है कि अमरीका के पास अब तेल बहुत अधिक हो गया है वह तेल का निर्यात भी करने लगा है अतः उसे मध्यपूर्व के तेल की ज़रूरत नहीं है।
दूसरा कारण यह है कि ईरान के नेतृत्व में बनने वाले इस्लामी प्रतिरोधक मोर्चे की ताक़त बहुत बढ़ चुकी है और चीन की आर्थिक व सामरिक शक्ति में लगातार वृद्धि हो रही है। कुछ ही वर्षों में डालर का प्रभुत्व समाप्त होने वाला है।
तीसरा कारण यह है कि अमरीका ने सऊदी अरब और इस्राईल की रक्षा के लिए जो मिसाइल ढाल व्यवस्था स्थापित कर रखी थी वह पूरी तरह फ़ेल हो गई है। बक़ैक़ और ख़रैस में आरामको के तेल प्रतिष्ठानों पर होने वाले हमलों से इस सिस्टम की नाकामी पूरी तरह खुलकर सामने आ गई हैं। दूसरी ओर ईरान ने हुरमुज़ के इलाक़े में अमरीकी ड्रोन को मार गिराया।
चौथा कारण यह है कि अमरीकी प्रतिबंध ईरान, चीन, रूस और वेनेज़ोएला को झुका नहीं पाए बल्कि इन देशों ने एक संयुक्त गठजोड़ बना लिया है जिसमें दूसरे देश भी शामिल हो सकते हैं।
पांचवां कारण यह है कि ट्रम्प ने 2015 के चुनावी कैंपेन में कहा था कि मध्यपूर्व से वह सारे अमरीकी सैनिकों को अमरीका वापस लाएंगे। उन्होंने इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान युद्ध का विरोध किया मगर उन्होंने अरब देशों से सैकड़ों अरब डालर वसूलने के लिए अपना फ़ैसला टाल दिया था। लेकिन अब हालत यह है कि अरब सरकारों के ख़ज़ाने ख़ाली हो गए हैं।
अमरीका ने यह फ़ैसला जल्दी में इसलिए किया कि उसे सऊदी अरब के भीतर आरामको के तेल प्रतिष्ठानों पर होने वाले हमले ने डरा दिया। यह बात अमरीकी और इस्राईली दोनों ही मान रहे हैं कि यह हमला जिसने किया है वह हक़ीक़त में असाधारण दक्षता और कौशल रखने वाले लोग हैं।
बीस मिसाइल और ड्रोन विमान कई सौ किलोमीटर दूर से चलकर अपने लक्ष्य को बड़े सटीक रूप से ध्वस्त कर देते हैं, यह देखकर इस्राईली बुरी तरह डर गए हैं क्योंकि उन्हें अच्छी तरह पता है कि अमरीकी मिसाइल ढाल व्यवस्था पैट्रियट और राडार तैनात होने के बावजूद जब यह मिसाइल और ड्रोन अपने लक्ष्य तक पहुंच गए तो इस्राईल के डिमोना परमाणु केन्द्र तक क्यों नहीं पहुंच सकते।
अब तो हिज़्बुल्लाह को डेढ़ लाख मिसाइलों की भी ज़रूरत नहीं है वह कुछ दर्जन मिसाइलों की मदद से इस्राईल के सारे हवाई अड्डों, रेल स्टेशनों, बिजली के केन्द्रों, जल प्रतिष्ठानों, कारखानों अमोनिया के भंडारों और नक़्ब मरुस्थल में डिमोना परमाणु केन्द्र को निशाना बना सकता है।
👉 अबदुल बारी अतवान
हम एक बार फिर यह बात कह रहे हैं कि आने वाले दिनों और हफ़्तों में ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई का फ़ोन बहुत व्यस्त रहेगा। मध्यपूर्व के बहुत से शासक उनकी हमदर्दी हासिल करने के लिए लाइन में लगे रहेंगे। इनमें नेतनयाहू हरगिज़ नहीं होंगे क्योंकि तेहरान में कोई भी उनका फ़ोन रिसीव करने वाला नहीं है। बल्कि शायद उनका जवाब मिसाइलों से दिया जाए।
👉 सद्दाम और अर्दोगान, आरंभ एक जैसा तो क्या होगा अंजाम? ... कुछ रोचक तथ्य...
नये तुर्की रिपब्लकिन के संस्थापक " मुस्तफा अतातुर्क" का एक कथन है जिसे तुर्की की यूनिवर्सिटियों में भी पढ़ाया जाता है। इसमें " अतातुर्क" कहते हैं कि " युद्ध आरंभ करना अपराध है जब तक कि देश की जनता का जीवन खतरे में न पड़ जाए।"
निश्चित रूप से राष्ट्रपति अर्दोगान को यह कथन बहुत अच्छी तरह से याद होगा लेकिन वह " ओटोमन " या उस्मानी हैं इस लिए इस कथन के पालन से इन्कार कर दिया। यही नहीं उन्होंने अपने नये घटक, विलादमीर पुतीन की बात भी नहीं मानी जिन्होंने फोन करके उनसे कहा था कि सीरिया के पूर्वोत्तरी भाग पर हमले से पहले ठंडे दिमाग से सोच विचार कर लें।
कुर्दों की समस्या एक ही है चाहे वह उत्तरी इराक़ के हों या उत्तरी सीरिया के, वह हमेशा अपने अरब घटकों के दुश्मनों विशेषकर अमरीकियों और इस्राईलियों से हाथ मिलाते हैं। उन्हें अपनी राष्ट्रीयता याद नहीं रहती मगर जब धोखेबाज़ घटक अमरीका उनकी पीठ में छुरा घोंपता है तो उन्हें अपने देश की याद आती है।
बाद तुर्की ने पहले भी कुर्दों पर धावा बोलने की तैयारी की थी। कुर्दों को अपने देश और अपनी सरकार की याद आयी थी और सीरिया और रूस से मदद की गुहार करने लगे थे।
सीरिया की सरकार ने कुर्दों की गुहार और रुख का स्वागत किया था और तुर्की के हमले के मुक़ाबले में उनकी मदद व समर्थन का वादा किया लेकिन कुर्दों ने सीरिया की केन्द्र सरकार के साथ किये गये हर समझौते को तोड़ दिया और अमरीका की गोद में बैठ गये। इन कुर्दों ने अमरीका के साथ मिल कर सीरियाई सेना के खिलाफ युद्ध लड़ा लेकिन अब जब उन्हें ज़रूरत पड़ती है तो सीरियाई बन जाते हैं जिनकी मदद करना सीरिया की सरकार का कर्तव्य होता है और जब अमरीका के आशीर्वाद का इशारा मिलता है तो कुर्द बन जाते हैं।
राष्ट्रपति अर्दोगान ने खतरनाक खेल शुरु किया है विशेषकर इस लिए भी कि उन्हें अपने इस क़दम के लिए रूस और ईरान का समर्थन नहीं प्राप्त है बल्कि यह दोनों तो इस हमले का विरोध कर रहे हैं। हमें यह महसूस होता है कि इस खतरनाक राह के अंत में तुर्की को ही नुक़सान उठाना पड़ेगा और इस से अर्दोगान को भी डरना चाहिए।
हम इस लिए यह कह रहे हैं क्योंकि अर्दोगान और सद्दाम में बहुत सी बातें मिलती जुलती हैं। सद्दाम एक बेहद महत्वकांक्षी नेता थे और उनकी इस महत्वकांक्षा ने उन्हें इराक़ के इतिहास का क्रूर तानाशाह बना दिया था। अमरीका ने सद्दाम की महत्वकांक्षा और पूरे इलाक़े पर राज करने के सपने को पंख देते हुए पहले ईरान पर हमला करवाया और जब वर्षों के बाद यह स्पष्ट हो गया कि अब सद्दाम को निचोड़ा जा चुका है और अमरीका के किसी काम के नहीं है तो फिर कुवैत पर हमला करवा दिया और इसमें उस समय बगदाद में मौजूद अमरीकी राजदूत ने मुख्य भूमिका निभाई। कुवैत में बिछाए गये अमरीकी जाल में सद्दाम फंस गये और फिर उसके बाद जो कुछ हुआ उससे दुनिया अवगत है।
तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोगान को भी बहुत पहले से सद्दाम की तरह महत्वकांक्षी कहा जा रहा है। उनके राजनीतिक सफर और " ओटोमन साम्राज्य" की वापसी के लिए उनकी कोशिशों में अर्दोगान की यह छवि बहुत अच्छी तरह से नज़र आती है। इलाक़े पर राज करने और इलाक़े की सब से बड़ी शक्ति बनने की सद्दाम वाली इच्छा, अर्दोगान के मन में भी बहुत पहले से जाग चुकी है। इसी इच्छा की पूर्ति के लिए उन्होंने सीरिया के खिलाफ, अमरीका, इस्राईल और सऊदी अरब सहित उनके क्षेत्रीय घटकों से हाथ मिलाया था लेकिन जब, रूस, सीरिया, ईरान और उसके घटकों ने इस साज़िश को नाकाम बना दिया तो भी अर्दोगान हार मानने पर तैयार नहीं हुए, अमरीका का साथ मिला तो हिम्मत बढ़ी और रूस का युद्धक विमान मार गिराया, मगर अमरीका ने साथ नहीं दिया तो रूस के सामने हाथ जोड़ दिये और माफी मांग ली और फिर उसे खुश करने के लिए रूस का एस़-400 एन्टी मिसाइल सिस्टम खरीद लिया मगर इससे अमरीका नाराज़ हो गया और उन्हें रोकने की भरपूर कोशिश की मगर अब अर्दोगान की मजबूरी रही हो या अमरीका से गुस्सा, उन्होंने रूस से एस-400 खरीद लिया और बहुत से टीककारों के अनुसार इसी के बाद अमरीका ने उनके लिए उत्तरी सीरिया में जाल बिछाने का फैसला कर लिया। इस इलाक़े में कुर्द विद्रोही रहते हैं जिन्हें सबक़ सिखाकर तुर्की में राष्ट्रीय नायक और इलाक़े में ताकतवर नेता बनने का सपना अर्दोगान बहुत पहले से देखते आए हैं। अमरीका ने इस इलाक़े में तैनात अपने सैनिक वापस बुलाकर अर्दोगान के लिए जाल फैला दिया और उस पर तुर्की के घोर विरोधी कुर्दों का दाना डाल दिया, अर्दोगान तेज़ी से जाल की तरफ बढ़ रहे हैं, अंजाम क्या होगा? (Q.A.)
👉 तेल टैंकर पर हमले के ज़िम्मेदार ख़मियाज़ा भुगतने के लिए तय्यार रहे, ईरान की चेतावनी
👉 ईरान ने कहा है कि तेल टैंकर पर हमले का ख़तरनाक खेल शुरु करने वालों पर इसके अंजाम की ज़िम्मेदारी है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्बास मूसवी ने रेड सी में ईरानी तेल टैंकर पर हमले की प्रतिक्रिया में कहा कि इस हमले की नतीजे में क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण सहित दूसरी ज़िम्मेदारियां इस ख़तरनाक खेल खेलने वालों के कांधे पर हैं।
उन्होंने कहा कि ईरान की राष्ट्रीय तेल कंपनी की जांच दर्शाती है कि शुक्रवार की सुबह लाल सागर के पूर्वी भाग में ईरानी तेल टैंकर गुज़रने वाले कोरिडोर के निकट आधे घंटे के अंतराल में 2 बार हमलों का निशाना बना जिससे इस तेल टैंकर को नुक़सान पहुंचा।
अब्बास मूसवी ने तेल टैंकर के नियंत्रण में होने का उल्लेख करते हुए कहा कि ख़ुश क़िस्मती से टैंकर के कर्मी दल को कोई नुक़सान नहीं पहुंचा और तेल टैंकर की हालत स्थिर है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में रेड सी में ईरानी तेल टैंकरों पर हमले हुए हैं जिनकी जांच जारी है।
अब्बास मूसवी ने ईरान के तेल टैंकर की टंकी से रिसने वाले तेल की वजह से क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण पर चिंता जताते हुए कहा कि इस ख़तरनाक हमले में लिप्त तत्वों का पता लगाने के लिए जांच जारी है जिसके नतीजे का बाद में एलान होगा। (MAQ/N)
👉 ईरान से इस्राईल की 5 बड़ी हार... बताया इस्राईली टीकाकार ने ...
👉 इस्राईली टीकाकार, लीमूर समीमियान दाराश ने अपनी एक लेख में ईरान के सामने इस्राईल की 5 बुनियादी हार का जायज़ा लिया है।
लीमूर अवैध अधिकृत बैतुलमुक़द्दस में हेब्रू यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर हैं। वह इस्राईल हायोम समाचार पत्र में लिखती हैं कि ईरान के सामने इस्राईल की पहली हार तीन चरणों में पूरी हुई। पहला चरण सन 2010 में थी जब इस्राईली प्रधानमंत्री नेतेन्याहू और रक्षा मंत्री एहुद बाराक द्वारा ईरान के खिलाफ सैन्य अभियान के प्रस्ताव का इस्राईली सेना ने विरोध किया। विरोध करने वालों में मोसाद के तत्कालीन प्रमुख " मईर डेगान" और तत्कालीन चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ " गाबी इश्कनाज़ी" आगे-आगे थे।
हिब्रू यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र पढ़ाने वाली प्रोफेसर समीमियान लिखती है कि दूसरा चरण वह था जब इस्राईली सेना के तत्कालीन चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ " बेनी गान्तेज़ " ने सन 2011 में एक फिर ईरान पर सैन्य आक्रमण के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। पहली हार का तीसरा चरण वह था जब ईरान पर सैन्य आक्रमण के समय को लेकर नेतेन्याहू और एहुद बाराक एक दूसरे से भिड़ गये और सैन्य आक्रमण टल गया।
इस्राईली टीकाकार, लीमूर समीमियान दाराश कहती हैं कि ईरान के सामने इस्राईल की दूसरी पराजय उस समय हुई जब ईरान के साथ दुनिया ने परमाणु समझौता किया जो उनके अनुसार ईरान द्वारा परमाणु हथियारों की तैयारी में बाधा नहीं था बल्कि उसे कुछ वर्षों के लिए विलंबित करने वाला ही था। उन्होंने दावा किया कि इस समझौते के बाद यही समझा जाता रहा कि ईरान अगर चाहे तो एक साल के भीतर परमाणु बम बना सकता है।
इस्राईली टीकाकार, लीमूर समीमियान दाराश ने लिखा है कि इस्राईल, हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा यहां तक कि प्रस्ताव क्रमांक 2331 जारी होगा जिसकी वजह से ईरान को यह अनुमति मिल गयी कि वह वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए यूरेनियम का संवर्धन करके एक परमाणु देश बन जाए। इस प्रकार प्रतिबंध खत्म किये जाने से ईरान को अपने 100 अरब डॉलर वापस मिले गये जिसका उसकी अर्थ व्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
इस्राईली टीकाकार, लीमूर समीमियान के अनुसार ईरान के सामने, इस्राईल की तीसरी हार, ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर उसकी प्रतिक्रिया में नज़र आयी। नेतेन्याहू ने इस प्रकार से इस समझौते का विरोध किया जैसे वह अपनी व्यक्तिगत राय प्रकट कर रहे हों। उस समय उनके प्रतिस्पर्धी " इस्हाक़ हर्त्ज़ोविग" ने कहा था कि नेतेन्याहू, ईरान के परमाणु समझौते के विरोध में सीमा पार कर रहे हैं। इसी प्रकार एहुद ओल्मर्ट और याईज़ लापीद ने कहा कि नेतेन्याहू ने उस समय अमरीकी कांग्रेस में अपने भाषण से तेल अबीव व वाशिंग्टन के संबंधों को खराब कर दिया।
ईरान द्वारा परमाणु समझौते के पालन की परमाणु ऊर्जा की अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी आईएईए द्वारा बार बार पुष्टि के बावजूद यह इस्राईली टीकाकार लिखती हैं कि ईरान के सामने इस्राईल की चौथी हार यह थी कि ईरान ने समझौते का उल्लंघन किया। समझौते के अनुसार 8 टन संवर्धित यूरेनियम को ईरान से बाहर निकालना था लेकिन इस बात का कोई सुबूत नहीं है कि ईरान ने यह काम किया था।
इस्राईली टीकाकार, लीमूर समीमियान दाराश लिखती हैं कि ईरान के सिलसिले में इस्राईल की पांचवी हार उस समय हुई जब इस्राईल ने, ईरान के सैन्य परमाणु कार्यक्रम से पर्दा हटाया, अमरीका इस समझौते से निकल गया और ईरान पर दोबारा प्रतिबंध लगा दिये गये। इन सब के बावजूद वरिष्ठ पत्रकार और संसद के वामपंथी सदस्य यथावत इस्राईली सरकार को कटघरे में खड़ा किये हैं।
इस्राईली टीकाकार, लीमूर समीमियान लिखती हैं कि ईरान के सामने यह पांचों पराजय इस लिए इस्राईल को देखना पड़ी हैं क्योंकि इस्राईली राजनेता, अपने राजनीतिक व दलीय प्रतिस्पर्धाओं को किसी भी अन्य युद्ध से अधिक महत्व देते हैं।
याद रहे हालिया दिनों में इस्राईली मीडिया में ईरान के सामने इस्राईल की नाकामियों पर खुल कर चर्चा हो रही है।
इसी तरह यह भी कहा जा रहा है कि इस्राईल, ईरान के सामने बेहद असुरक्षित है और इस्राईल के पास न तो ईरान के ड्रोन विमानों को रोकने का कोई तरीका है और न ही उसके मिसाइलों से बचने का कोई रास्ता है।(Q.A.)
👉 रोयटर्ज़ः अमरीका हज़ारों सैनिक सऊदी अरब भेज रहा है!
👉 ब्रिटिश न्यूज़ एजेंसी रोयटर्ज़ ने शुक्रवार को जानकार सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि सऊदी अरब की आरामको तेल कंपनी के प्रतिष्ठानों पर होने वाले बड़े ड्रोन और मिसाइल हमले के बाद अमरीका कई हज़ार सैनिक सऊदी अरब भेजने का इरादा रखता है।
पेंटागोन ने रोयटर्ज़ के पत्रकार द्वारा टिप्पणी मांगे जाने पर औपचारिक रूप से बयान देने से इंकार किया लेकिन कुछ जानकार सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सैनिकों को सऊदी अरब भेजने का फ़ैसला हो चुका है।
ज्ञात रहे कि सऊदी अरब की आरामको तेल कंपनी पर होने वाले बड़े हमले ने सऊदी अरब की अर्थ व्यवस्था और पूरे तेल सेक्टर में हलचल मचा दी। सऊदी अरब का तेल उत्पादन आधा हो गया।
रिपोर्टों से पता चलता है कि हमले के बाद से अब तक सऊदी अरब को कम से कम दो अरब डालर का नुक़सान हो चुका है
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सम्पादक: खोज जारी है न्यूज:- चैनल: की खास खबर
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