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#@हरदोई:- आइए देश के नौजवानों एवं माताओं बहनों आप लोगों को कुछ पूर्व की महामारी बीमारियों से कराते हैं रूबरू... #@खोज जारी है.24×7 न्यूज चैनल/ हिंदी दैनिक समाचार पत्र आपको सच दिखाने की रखता है ताकत@#

#@हरदोई:- आइए देश के नौजवानों एवं माताओं बहनों आप लोगों को कुछ पूर्व की महामारी बीमारियों से कराते हैं रूबरू...

#@खोज जारी है.24×7 न्यूज चैनल/ हिंदी दैनिक समाचार पत्र आपको सच दिखाने की रखता है ताकत@#

#@हरदोई:- वैसे तो भारत की सबसे भयंकर महामारी है हिंदुओं की यादाश्त का कम होना....
तो इस बीमारी के चलते आपको ऐसी गर्मी आज तक न पड़ी, जून में बारिश आज तक न हुई और ऐसी बीमारी कभी न फैली जैसे डायलॉग सुनने को मिल जाएंगे....
पर क्या वाकई@#

#@नहीं साहिब जितना पुराना भारत है उतना ही पुराना हमारा महामारियों से महाभारत भी... पर आपको वैदिक काल से सुनाना सुरु करूँगा तो पोस्ट की जगह ग्रंथ बन जायेगा .... तो थोड़ा पीछे ही चलेंगे- ठीक@#

#@मलेरिया भारत में उतना ही पुराना है जितना के भारत खुद.... अथर्ववेद और चरक संहिता में इसपर लिखा गया.... और ईलाज़ भी बताया गया लेकिन भारत के ज्ञात इतिहास में गोरों के आने से पहले कभी मलेरिया के किसी तांडव का जिक्र नहीं.... 1935 में मलेरिया ने पहला तांडव मचाया पर हर चीज़ लिखने वाले गोरों ने इसपर सिर्फ आर्थिक नुकसान ही लिखा और कुछ नहीं@#
#@भारत आज़ाद हुआ नेहरू अंकिल अभी खुद के PM होने का जश्न मना भी न पाए थे के 1950 में मलेरिया फैल गया और ऐसा फैला के भारत की तब की जनसंख्या का 25% इसकी चपेट में आगया यानी करीब 8 करोड़ लोग और ये सरकारी आंकड़ा है.... 1953 तक हर साल इससे सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 8 लाख मौतें हुई.... फिर नेहरू चिचा की नींद खुली और उन्ने एक मलेरिया विभाग बना दिया@#
#@गाँव गाँव कांग्रेस के छुटभैये #मलेरिया_डॉक्टर बना दिये गए कुनैन की गोलियां पकड़ा और छुट्टी.... आपदा में अवसर वैसे भी भारतीयों की परंपरा ढूंढा जाए तो हमारे भीतर थोड़ा बहुत गिद्धों का डीएनए निकलेगा.... खैर मलेरिया उसके बाद भी चला और कागज़ों पर मलेरिया का प्रबंधन और निर्मूलन भी 70 साल से ऊपर हो गए पर मलेरिया अनपढ़ है सो उसने एक्को कागज़ खोल नहीं पढ़ा... और आज भी जारी है@#

#@अंग्रेज भारत आये तो अपने साथ कई बीमारियां भी लाये.... ऐसी ही एक बीमारी थी कॉलेरा (cholera) बंगाल पर काबिज़ हो अंग्रेज़ो ने वहां अपने उद्योग लगाए जिनमें मृत जानवरों के अवशेष वाले काम भी थे.... जल श्रोतों के दूषित होने के चलते 1817 से बंगाल में ये बीमारी कहर बरपाने लगी@#
#@पर अंग्रेज़ो के जमाने से आगे बढ़ें तो भी आज़ाद भारत में कॉलेरा बच्चों की जान लेने वाला बड़ा कारण रहा और कड़वा सच यही है के प्रत्येक भारतीय को पीने का साफ पानी उपलब्ध करवाने, नदियों की सफाई आदि के गंभीर और जमीनी प्रयत्न 2016 के बाद ही चालू हुए@#...

#@हम हिंदुस्तानियों की गंदगी फैलाने की कीमत हमारे बच्चों ने अपंगता से चुकाई... पोलियो हालांकि उत्तरी अफ्रीका के रेगिस्तानी इलाकों में पुरातन समय से था पर 1950 के बाद दुनियाँ में कहर बना... 1977 तक दुनियाँ के तमाम बड़े मुल्कों ने इसपर काम सुरु कर दिया...
तो भारत की सरकार भी कुछ जगी और 1978 में इसपर एक संस्था बना छुट्टी पा ली... अगले 10 साल पोलियो को लेकर कुछ न किया गया और 1988 में आकर फिर कुछ नीद खुली फिर कुछ अंग्रेजीदा सेमिनार मीटिंग्स हुई...
WHO की मेहरबानी से दवा पिलाने का काम भी हुआ पर मर्ज की रफ्तार बढ़ती गई...
और लगभग आधी दुनियाँ के इस अभिशाप से मुक्त होने के बाद हम जागे और 1999 से इसपर व्यापक अभियान छिड़ा... और 13 साल के बाद इसमें सफलता मिली... जबकि ज्यादातर देश 3 से 5 साल में ही सफल हो लिए@#...

#@ऐसी ही #आयातित_बीमारी थी चेचक... चेचक का का टीका हालांकि 200 साल से भी पहले एडवर्ड जेनर साहब ने बना दिया था पर उसे भारत में आने में बड़ा समय लगा....नतीज़ा
1974 में चेचक भारत में महामारी के तौर पर फैला@#

@#कमाल ये था के तब तक बाकी दुनियाँ के ज्यादातर मुल्क चेचक मुक्त हो चुके थे लेकिन हम तो हम है और उससे भी उम्दा हमारी सरकारें... 1974 में दुनियाँ भर के 86% केस सिर्फ भारत में थे....  सरकारी आंकड़े कहते हैं के उस एक साल में करीब 15000 बच्चे चेचक से मरे और लगभग इतने ही अंधे हो गए पर वास्तविक संख्या इससे कई गुणा थी@#

#@खैर WHO और सरकार ने फिर चेचक पर कमर कसी और कागज़ों में हमें चेचक मुक्त देश भी घोषित कर दिया गया..... लेकिन चेचक आज भी है...
वैसे चेचक की पहली दवा 2018 में आयी और उम्मीद है कभी भारत भी पहुंच जाएगी@#

#@जापानी बुखार, काली खांसी और जाने कितनी बीमारियां नियमित अंतराल पर इस देश के लोगों को डसती रही.... देश की सरकारें अपनी ही रवानी में काम करती रहीं... तब न प्रभावी मीडिया था न सोशल मीडिया सो चीजों पर चर्चा भी कभी आम न हुई.... भारत में सरकारों के महामारियों पर रवैये के ये चंद उदाहरण भर हैं पूरी कहानी लिखी न जा सकती वही कथा अनंता वाला हिसाब@#

#@कभी आंकड़े खंगालिए कभी इतिहास पलट देखिये तब आप समझ पाएंगे के इस कोरोना आपदा में मोदी ने इस देश और उसके लोगों के लिए क्या किया..... वर्ना यहाँ तो आपदा बीतने के सालों बाद उसपर कमेटियां बनने के रिवाज थे..... ज्यादा हुआ तो मरने वाले के घर वालों के आगे कुछ सिक्के फैंक दो..... बस इतनी कीमत थी हिंदुस्तानी जानों की सरकारों की नज़र में@#

#@धन्यवाद कहिए ईश्वर को के इस समय कोई नेहरू छाप सरकार न थी वर्ना इतिहास खुद को फिर दोहराता@#

#@दुनियाँ में श्रेष्ठतम कोरोना प्रबंधन और रोकथाम आपके देश में हुए हैं इस बात पर थोड़ा गर्व भी करिये@#

डीपी सिंह चौहान "संपादक" खोज जारी है.24×7 न्यूज चैनल/ हिंदी दैनिक समाचार पत्र आपको सच दिखाने की रखता है ताकत...

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