#हरदोई:- टड़ियावां- माया के खेल में फंसे देवर्षि नारद जी को स्त्री बनना पड़ा/ अवधेश शरण शुक्ल#
#हरदोई:- टड़ियावां- माया के खेल में फंसे देवर्षि नारद जी को स्त्री बनना पड़ा/ अवधेश शरण शुक्ल#
#हरदोई: टड़ियावां- ब्लॉक के गांव सिकरोहरी में चल रहे सत्ताइसवें शतचंडी महायज्ञ व देवी भागवत कथा में रविवार को छठवें दिन आचार्य अवधेश शरण शुक्ल ने कथा सुनाते हुए बताया कि माया का खेल बहुत ही निराला होता है। माया के खेल में फंसे देवर्षि नारद को स्त्री बनना पड़ा उन्होंने कथा सुनाते हुए बताया कि एक बार ऐसा हुआ कि नारद मुनि ने विष्णु से हाथ जोड़कर पूछा की प्रभु ये माया क्या है, ये मुझे समझाइये। भगवान् विष्णु ने कहा कि माया बहुत जटिल चीज है इसे तुम ना जानो तो ही बेहतर होगा। लेकिन नारद मुनि की उत्सुकता इतनी तेज थी कि वो मानने को तैयार ही नहीं थे। हाथ जोड़कर अनुनय विनय करने लगे। नारद के बार बार निवेदन करने पर भक्तवत्सल भगवान् विष्णु मान गए और उन्होंने कहा कि चलो तुमको बताता हूं कि माया क्या है।फिर विष्णु नारद को लेकर कन्नौज के पास एक सरोवर के निकट पहुंचे और बोले कि हे नारद, इस सरोवर में स्नान करो। स्नान करने से तुमको पता चल जायेगा कि माया क्या है। नारद मुनि एक हठी बालक की भांति मन की मुराद पूरी होने पर प्रसन्न होते हुए सरोवर में उतर गए।विष्णु की माया का खेल शुरू हुआ और हुआ चमत्कार! जैसे ही नारद मुनी पानी में डुबकी लगाकर बाहर निकले उनका शरीर बदल चुका था। वो एक बेहद खुबसूरत स्त्री के रूप में आ चुके थे। ऐसी स्त्री जिसका हर अंग यौवन और खूबसूरती की पराकाष्ठा लिए था। अब तक नारद की स्मरण शक्ति भी कम हो गयी। जैसे ही माया का खेल शुरू हुआ, विष्णु वहां से अंतर्ध्यान हो गए।उसी समय वह से तालध्वज नाम का राजा वहां से गुजर रहा था। राजा ने देखा एक बहुत ही कामुक और सुन्दर स्त्री सरोवर के पास खडी है। राजा का मन उस सर्वांगसुंदरी स्त्री बने नारद पर मोहित हो गया। राजा ने गजगामिनी स्वरूपा स्त्री के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। नारद भी मोहित हो चुके थे, सो दोनों ने विवाह कर लिया। 12 वर्षो के पश्चात स्त्री रूपी नारद ने 50 बच्चो को भी जन्म दिया। ये बच्चे कौरवों की तरह उदंड और अभिमानी थे। कालांतर में इनका युद्ध पांडवों से हुआ जिसमे सारे पुत्र मारे गए।इस बात की ख़बर मिलते ही नारद बहुत दुखी हुए। रो रोकर उनका बुरा हाल हो गया। कई दिनों तक खाना पीना सब छोड़ दिया। फिर एक दिन राजा की सभा में स्वयं विष्णु ब्राह्मण के वेश में आये और ज्ञान दिया कि तुम दोनों पति पत्नी जिस नुकसान को लेकर रो रहे हो वो वास्तव में हुआ ही नहीं। ये सब माया का खेल है। इतना कहकर विष्णु ने अपनी माया समेट ली#
#नारद जी तुरंत अपने असली रूप में आ गए। उनको नया ज्ञान मिल चुका था। माया के जाल में फंसे नारद माता और पत्नी का किरदार निभा रहे थे किन्तु सत्य से परिचित होते ही देवर्षि के रूप में वापस आ गए। नारद भगवान् विष्णु के समक्ष हाथ जोड़ कर नतमस्तक हो गए और फिर नारायण नारायण जपते हुए अपने लोक में वापस आ गए। कथा मे विश्राम लेते हुए पूर्व ब्लाक प्रमुख उदयराज सिंह व ह्रदय राज सिंह आदि ने भगवती की पूजा अर्चना की।कथा में आलोक शास्त्री ने भरत चरित्र व सीता स्वयंवर की कथा सुनाई। सन्तोष मिश्र ने महाभारत के आख्यान को सुनाया।कथा में यजमान मोहनीश सिंह चंदेल,हृदयराज सिंह, चन्द्रराज सिंह,श्यामा कुमार सिंह, सूरज सिंह,गगन सिंह,अनुज सिंह,अमरपाल राठौर, नीरज राठौर आदि सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद रहे#
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