#हरदोई:- पिहानी- गरीब और वंचित सहित सभी वर्गों की आवाज बने बाबा साहब/ कुशी बाजपेई#
#हरदोई:- पिहानी- गरीब और वंचित सहित सभी वर्गों की आवाज बने बाबा साहब/ कुशी बाजपेई#
#हरदोई: पिहानी- रविवार को कस्बे के शाहबाद तिराहा पर अंबेडकर जयंती के अवसर पर जन जागरूकता रैली का शुभारंभ मुख्य अतिथि ब्लॉक प्रमुख कुशी वाजपेई ने हरी झंडी दिखाकर किया। संघ प्रिय गौतम, महेंद्र विक्रम सिंह ,अशोक कुमार, अरविंद कुमार ,फूल सिंह यादव,अनिल कुमार गौतम नृपेन्द्र चक्रवर्ती समेत दर्जनों डॉक्टर भीमराव अंबेडकर समिति के पदाधिकारी ने मुख्य अतिथि कुशी बाजपेई का स्वागत किया। बाइक रैली के शुभारंभ के मौके पर कुशी वाजपेई ने कहा कि भीमराव अम्बेडकर आज की राजनीति के ऐसे नायक है, जिसे हर पार्टी 'अपना' बनाना चाहती है। लेकिन बाबा साहेब समाज के वो नायक थे, जो ताउम्र गरीब और वंचित वर्गों की आवाज बने। उन्हें भले ही दलितों का मसीहा माना जाता हो, लेकिन यह भी सच्चाई है कि उन्होंने सिर्फ दलितों की ही नहीं बल्कि समाज के सभी शोषित-वंचित वर्गों के अधिकारों की आवाज उठाई। जन जागरूकता बाइक रैली शाहाबाद तिराहा से होकर बस स्टैंड कटरा बाजार गोपामऊ चुंगी होते हुए दर्जनों गांव जाएगी#
#सिर्फ दलितों के नहीं अम्बेडकर/ कुशी बाजपेई#
#बाबा साहेब ने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और दलितों के खिलाफ सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है कि आंबेडकर सिर्फ दलितों के थे। उन्होंने समाज के हर उस वंचित वर्ग के अधिकारों की बात की, जिसे समाज में दबाया गया। उन्होंने श्रमिकों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया। डॉ. आंबेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन चलाया। अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया#
#मुश्किलों भरा था बाबा साहब का जीवन/ सोनू भारती जिला#
#रैली के शुभारंभ के मौके पर जिला पंचायत सदस्य सोनू भारती ने कहा कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण बाबा साहेब का पालन-पोषण बड़ी मुश्किल से हो पाया। इन परिस्थितियों में ये तीन भाई- बलराम, आनंदराव और भीमराव तथा दो बहनें मंजुला और तुलसा ही जीवित बच सके। सभी भाई-बहनों में सिर्फ इन्हें ही उच्च शिक्षा मिल सकी, लेकिन इसके लिए भी उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा। अपनी जाति के कारण उन्हें सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा था। स्कूली पढ़ाई में सक्षम होने के बावजूद छात्र भीमराव को छूआछूत के कारण कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। स्कूल के सबसे मेधावी छात्रों में गिने जाने के बावजूद इन्हें पानी का गिलास छूने का अधिकार नहीं था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। बाद में उन्होंने हिंदू धर्म की कुरीतियों को समाप्त करने का जिंदगी भर प्रयास किया#
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