पत्रकारिता द्वारा स्वतंत्रता के महत्व का प्रतिपादन
***पत्रकारिता द्वारा स्वतंत्रता के महत्व का प्रतिपादन***
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डीपी सिंह चौहान (सम्पादक) खोज जारी है न्यूज चैनल/हि०दै० समाचार पत्र: (यू०पी)
परतंत्र भारत में प्रकाशित विविध पत्रों के अध्ययन से ज्ञात होता है । कि उस समय की पत्रकारिता तेजस्वनी , ओजस्वनी निर्भय , परमन्याय परायणा तथा सर्वतः पूण्यसंचारिणी रही है यही कारण है कि महर्षि अरविंद , भूपेंद्रनाथ दत्त , डॉक्टर एनी बेसेंट और महात्मा गांधी जैसे वरेण्य महापुरुषों ने राष्ट्र सेवा हेतु पत्र से अपना घनिष्ठ संबंध रखा उन पुरुषों के अनुसार पत्र द्वारा मंदोन्मत्त शासक को नियंत्रित किया जा सकता है ।
हिंदी पत्रकारिता का व्यक्तित्व राष्ट्रीय चेतना और क्रांति के मणिकांचन संयोग से बना है । जिसका स्वर विद्रोही का स्वर है । राष्ट्रीय चेतना के अंतर्गत मातृभूमि का स्तवन स्वदेश दौरान अतीत- चिंतन , राष्ट्रीय जागरण , वीर प्रशस्ति संघर्ष या यवनों के प्रति घृणा , स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार , गांधी दर्शन की व्याख्या , हिंदू मुस्लिम एकता , अछूतोद्धार राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की मान्यता आदि बातें समाहित होती हैं । इस राष्ट्रीय चेतना को स्पष्ट करने में हिंदी पत्रिकारिता सक्षम सिद्ध हुई , जैसा कि कहा गया- अरविंद घोष की मान्यता थी कि राजनीतिक स्वतंत्रता राष्ट्र की प्राणवायु है और इसकी अवज्ञा करके सामाजिक सुधार , शैक्षणिक सुधार , औद्योगिक विस्तार तथा नैतिक उत्थान के प्रयत्न निरी अज्ञानता के परिचायक हैं । राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्ति की विशेष आवश्यकता के यहां के पत्रों ने अपना आदर्श रखा और इसकी प्राप्ति के लिए बड़े-बड़े संघर्ष मोल लेकर तेजस्वी रूप को प्रकट किया।।।
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परतंत्र भारत में प्रकाशित विविध पत्रों के अध्ययन से ज्ञात होता है । कि उस समय की पत्रकारिता तेजस्वनी , ओजस्वनी निर्भय , परमन्याय परायणा तथा सर्वतः पूण्यसंचारिणी रही है यही कारण है कि महर्षि अरविंद , भूपेंद्रनाथ दत्त , डॉक्टर एनी बेसेंट और महात्मा गांधी जैसे वरेण्य महापुरुषों ने राष्ट्र सेवा हेतु पत्र से अपना घनिष्ठ संबंध रखा उन पुरुषों के अनुसार पत्र द्वारा मंदोन्मत्त शासक को नियंत्रित किया जा सकता है ।
हिंदी पत्रकारिता का व्यक्तित्व राष्ट्रीय चेतना और क्रांति के मणिकांचन संयोग से बना है । जिसका स्वर विद्रोही का स्वर है । राष्ट्रीय चेतना के अंतर्गत मातृभूमि का स्तवन स्वदेश दौरान अतीत- चिंतन , राष्ट्रीय जागरण , वीर प्रशस्ति संघर्ष या यवनों के प्रति घृणा , स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार , गांधी दर्शन की व्याख्या , हिंदू मुस्लिम एकता , अछूतोद्धार राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की मान्यता आदि बातें समाहित होती हैं । इस राष्ट्रीय चेतना को स्पष्ट करने में हिंदी पत्रिकारिता सक्षम सिद्ध हुई , जैसा कि कहा गया- अरविंद घोष की मान्यता थी कि राजनीतिक स्वतंत्रता राष्ट्र की प्राणवायु है और इसकी अवज्ञा करके सामाजिक सुधार , शैक्षणिक सुधार , औद्योगिक विस्तार तथा नैतिक उत्थान के प्रयत्न निरी अज्ञानता के परिचायक हैं । राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्ति की विशेष आवश्यकता के यहां के पत्रों ने अपना आदर्श रखा और इसकी प्राप्ति के लिए बड़े-बड़े संघर्ष मोल लेकर तेजस्वी रूप को प्रकट किया।।।
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