#जय श्रीराम के उद्घोष से कूच हुआ रामादल, 84 कोसी परिक्रमा का आरंभ, सांस्कृतिक/ आस्था का संगम#
#जय श्रीराम के उद्घोष से कूच हुआ रामादल, 84 कोसी परिक्रमा का आरंभ, सांस्कृतिक/ आस्था का संगम#
#हरदोई: कछौना- इतिहासिक 84 कोसी परिक्रमा अमावस्या के दिन ब्रम्ह मुहूर्त से डंका, घंटा, घड़ियाल और शंख ध्वनि की अनुगूंज वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पहला पड़ाव कोरौना सीतापुर से शुरू हो गई है। एक बार फिर परंपरा सांस्कृतिक और आस्था के संगम का साक्षी बनने जा रही है। रामादल यानी परिक्रमार्थी तीर्थों के दर्शन की अभिलाषा लिए पहले पढ़ाओ कोरौना की ओर प्रस्थान करेंगे। रथ सवार महंत, हाथी घोड़े सवार संत आकर्षण का केंद्र बनेंगे। इस परिक्रमा में देश के कोने-कोने से लेकर नेपाल तक के साधु और गृहस्थ शामिल होने को आते हैं। यह पौराणिक 84 कोसी परिक्रमा अमावस्या के दिन शुरू हो कर मिश्रिख में समाप्त होगी। अमावस्या के दिन परिक्रमा में शामिल होने वाले श्रद्धालु भक्त नैमिषारण्य पहुंच जाते हैं। चक्रतीर्थ में स्नान कर पहले पड़ाव कोरौना को राम राम की धुन के साथ पहुंच जाते हैं। सनातनी संस्कृति का प्रतीक 84 कोसी परिक्रमा में अध्यात्म की गंगा बहती है। यह परिक्रमा फाल्गुन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से 15 दिन तक चलेगी। इसमें विभिन्न संस्कृतियों का मिलन होता है। संसारिक माया मोह छोड़कर पदयात्रा कर पड़ाव बागों व खुले आसमान, टेंट में निवास कर जीवन जीने का संदेश देते हैं। इस परिक्रमा का महत्व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को सिद्धिविनायक की पूजा अर्चना कर प्रारंभ होती है। इसके करने से संपूर्ण तीर्थों का फल प्राप्त होता है। मानव 84 लाख योनियों के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त होता है#
#परिक्रमा के पड़ाव#
#प्रथम कोरौना सीतापुर, द्वतीय हरैया हरदोई, तृतीय नगवां कोथावां हरदोई, चतुर्थ गिरधरपुर उमरारी हरदोई, पांचवा साक्षी गोपालपुर हरदोई, छठा देवगवां सीतापुर, सातवां मडरूपा सीतापुर, आठवां जरिगवां सीतापुर, नौवा नैमिषारण्य सीतापुर, दसवां कोल्हुवा बरेठी सीतापुर, ग्यारवां मिश्रिख तीर्थ सीतापुर#
#वहीं प्रशासन की तरफ से परिक्रमार्थियों के लिए साफ-सफाई पेयजल चिकित्सा बिजली शौचालय आदि आवश्यक सुविधाएं कराई गई। अपने दैहिक व दैविक आनंद प्राप्त करने का माध्यम यहा परिक्रमा जन विश्वास व मान्यताओं से जुड़ी है। इस परिक्रमा के कुल 11 पड़ाव स्थल है। जिसमें सात सीतापुर व चार हरदोई जिले की सीमा में आते हैं। विभिन्न अखाड़ों व आश्रमों के संत महंतों गृहस्थ आध्यात्मिक गूंज यहां के पड़ाव स्थलों पर भजन कीर्तन प्रवचनों के रूप में एक नई ऊर्जा दिखाती है। धार्मिक सांस्कृतिक छाप लिए अनूठी परंपरा यहां पर आज भी जनसामान्य के लिए विशेष महत्त्व बनाए हुए हैं#
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